गीतिका
‘मैं कुछ हूँ’ का भान मुझे।
मिलता बहु सम्मान मुझे।।
मानकता का झंडा हूँ,
इसका है अभिमान मुझे।
मैं कहता , है सत्य वही,
रहती ऐसी बान मुझे।
मैं सजीव प्रामाणिक हूँ,
कहते सब विद्वान मुझे।
शब्दकोश चलता – फिरता ,
मैं ही , इसका ज्ञान मुझे।
किसने माँ का दूध पिया,
हरा सके मैदान मुझे।
वाल्मीकि मैं अवतारी,
कह हीरक की खान मुझे।
भाषाविद आदर्श कहो,
कविता का वरदान मुझे।
‘शुभम्’ पीपनी नहीं बजा,
कह कलयुग – संधान मुझे।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम्’