गीतिका
बिना भाव साकार न होता।
शब्दों का आकार न होता।।
जननी जनक नहीं यदि होते,
संतति का आधार न होता।
कृत पुण्यों के बीज न फलते,
भव – सागर से पार न होता।
सत करनी सुमनों – सी महके,
क्या मानव – आचार न होता ?
नहीं वासना होती अतिशय,
मानव भू का भार न होता।
होड़ लगी आगे बढ़ने की,
ग्रीवा में शुभ हार न होता।
‘शुभम्’ प्रकृति का न्याय बड़ा है,
देश – देश में वार न होता।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम्’