ठहर गया कदम
ठहर गया इन्सानियत की कदम
ठहर गया मानवता की सम्मान
खुल गया बेईमानों की शहर
खुल गया दर्जनों की दुकान
ठहर गया सच्चाई की कदम
ठहर गया सत्कर्म की सम्मान
खुल गया नादानों की शहर
खुल गया लुटेरों की दुकान
ठहर गया विकास की कदम
ठहर गया जनहित की सम्मान
खुल गया रिश्वतखोरों की शहर
खुल गया भ्रष्ट्राचारियों की दुकान
ठहर गया सेवाभाव की कदम
ठहर गया नैतिकता की सम्मान
खुल गया स्वार्थी की शहर
खुल गया अन्यायियों की दुकान
ठहर गया ज्ञानियों की कदम
ठहर गया ज्ञानियों की सम्मान
खुल गया अज्ञानियों की शहर
खुल गया पापियों की दुकान
— उदय किशोर साह