बालगीत – दो – दो खरहे पाले
मैंने दो – दो खरहे पाले।
आधे गोरे आधे काले।।
घर भर में वे दौड़ लगाते।
दिखते कभी कभी छिप जाते।
चिकने बाल सरकने वाले।
मैंने दो – दो खरहे पाले।।
सुबह सैर को मम्मी जातीं।
घास नोंचकर उनको लातीं।।
मैं कहता ले खरहे खा ले।
मैंने दो – दो खरहे पाले।।
कूकर बिल्ली से वे डरते।
दौड़ भागकर छिपते फिरते।।
बंद किए कमरे के ताले।
मैंने दो – दो खरहे पाले।।
सब्जी के छिलके तरबूजा।
खा लेते हैं वे खरबूजा।।
खाते खीरा बिना मसाले।
मैंने दो – दो खरहे पाले।।
शश की देखभाल हम करते।
नहीं किसी गृहजन से डरते।।
नाम रखे हैं गोरे काले।
मैंने दो – दो खरहे पाले।।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम्’