मुक्तक
-1-
रात दिन के संतुलन से है प्रकृति शुभदा सदा
उदित होते सोम सूरज हैं न विचलित एकदा
बह रही सरिता सजीली सिंधु से मिलना उसे
गूँजती वीणा सुरीली,विमल वाणी शारदा।
-2-
शुभ्रतम जीना अगर तो संतुलन अनिवार्य है
अग्रसर हो कर्मपथ पर धर्म तेरा कार्य है
दूसरों के छिद्र में क्यों डालता है अँगुलियाँ
राह मेंअपनी चला चल शिष्य या आचार्य है।
-3-
पित्त कफ या वात तीनों संतुलन होना सही
विषम भोजन रोगकारी दूध के सँग ज्यों दही
मास दो – दो के लिए आ जा रहीं ऋतुएँ यहाँ
याद रखना बात सच ये जो शुभम् ने है कही
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भू गगन जल वायु पावक से जगत साकार है
संतुलन विकृत हुआ तो विश्व ये बीमार है
सृष्टिकर्ता की महारत देखिए अद्भुत अटल
आँधियाँ, भूकंप , बाढ़ें ले रहीं आकार है।
-5-
संतुलन परिवार में हो संतुलन हो देश में
संतुलन संसार में हो विश्व में परदेश में
होड़ भी हथियार की ये हो नहीं संसार में
शांति का साम्राज्य होगा भूमि के हर देश में।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम्’