व्यंग्य – आदमी का सरल होना !
कभी आपने इस बात पर विचार किया है कि ‘क्याआदमी कभी सरल भी हो सकता है?’ अपने अध्ययन काल में एक कहावत पढ़ी थी : ‘कुत्ते की पूँछ बारह साल तक घूरे में गाड़ कर रखा गया ,किंतु सीधी नहीं हुई।’ चूँकि यह कहावत किसी कुत्ते ,बिल्ली या चूहे ने नहीं बनाई ,इसलिए इसे अन्योक्तिपरक रूप देने का श्रेय आदमी को ही देना चाहूँगा;क्योंकि आदमी अन्योक्तियाँ बुझाने का कुशल मर्मज्ञ है। वह क्यों अपनी ही प्रशंसा करके मियां मिट्ठू बनना पसंद करेगा? यह आदमी ही कुत्ते की वह हठीली,रपटीली, सर्पीली, बबाली और सवाली पूँछ है ; जिसमें सीधी सरल होने का ‘दुर्गुण’ कभी नहीं आया। हजारों ,लाखों क्या करोड़ों वर्षों से वह टेढ़ी की टेढ़ी ही है और भविष्य में भी टेढ़ी ही रहेगी ।
आदिम युग का आदमी जितना सरल औऱ सीधा था,उससे इस प्रश्न का उत्तर मिल सकता है। अब यह तो वही बात हो गई न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी।इतने पहले के आदमी को कहाँ से खोजकर लाया जाए? जब ऐसा नहीं हो सकता तो हमें ही यह विचार करना होगा कि क्या आदमी भी कभी सरल हो सकता है ?
जिसे भी देखते हैं ,वह जो नहीं है , वही बनने के फेर में चकरघिन्नी बना हुआ जीवन बिता देता है। आदमी ‘वह’ नहीं रहना चाहता ,जो वह वास्तव में है। वह इस प्रकार का मॉडल बनकर बाहर आना चाहता है कि चरण सिंह सरताज सिंह बनकर दिखाना चाहता है।गरीब सिंह ने अपना नाम धन सिंह रख लिया है।लक्ष्मी नाम धारी नारी भीख माँग रही है। इस ‘महान’ कार्य के लिए आजीवन खिट- खिट में खोया रहता है ।कभी कपड़े,कभी आभूषण,शृंगार, भाषा, आचरण , चरित्र आदि के नकली आवरण पहनता ,उतरता, बदलता, धोता ,सुखाता रहता है।कोई उसकी असलियत न जान ले, बस इसी प्रयास में वह नंगा होता है ,तो बंद हमाम में।वह अपनी पत्नी के सामने भी निरावरण नहीं होना चाहता। यही स्थिति नारियों की भी है, बल्कि कुछ ज्यादा भी हो तो शोध करने पर दूध का दूध पानी का पानी सामने आ जायेगा ! सरल होना तो उसने सीखा ही नहीं। इसी को उसने एक चिकना- चुपड़ा नाम दे रखा है : सभ्यता और संस्कार।
किसी अधिकारी, कर्मचारी,अभिनेता, नेता,धर्माधिकारी, रँगीले वेश धारी, कोई भी पुरुष या नारी ; सभी में पाई गई ये पवित्र बीमारी। घर पर लड़के वालों को लडक़ी दिखाते समय पड़ौस से माँगा गया सोफा सेट, टी सेट, लेमन सेट, डिनर सेट आदि उसके अति विशिष्ट पन दिखाने के बहु रूप ही हैं।इस मामले में प्रकृति ने भी मनुष्य का सहयोग ही किया है।उसके लिए हजारों प्रकार के रंग निर्मित कर उसे सौंप दिए हैं कि लो मैने तो तुम्हें जैसा बनाया था , बनाया ही था,अब तुम जितने टेढ़े बन सको, बन लो। क्योंकि अपना असली रूप दिखाने में तुम्हें शर्म आती है।जैसे जलेबी कभी सीधी सरल नहीं हो सकती ,वैसे तुम इंसान भी कुत्ते की पूँछ के बाप हो ,जो करोड़ों वर्षों में टेढ़े ही होते गए। औऱ अभी भी क्रम जारी है। सरलता तुम्हारे लिए नंगापन है। इसलिए असलियत को बाहर नहीं आने देना चाहते।सरलता देखनी हो तो दिगम्बर मुनियों से पूछो।विशिष्टता और अति विशिष्टता प्रदर्शन का विशिष्ट ढोंग तुम्हारा विशेष गुण है।
संसार के इतिहास में यदि सरल व्यक्तियों का शोध किया जाए तो बिरले ही मिल सकेंगे। यदि किसी देश औऱ धर्म के आलोक में ऐसे महामानवों की खोज की जाए तो उन्हें अँगुलियों पर भी आसानी से गिना जा सकता है; अन्यथा सारा संसार वक्रता का पर्याय बना हुआ अपने जलेबी पन का प्रतीक बन हुआ है। सर्प अपने बिल में भले सीधा घुसे किन्तु आदमी अपने घर में भी सरल नहीं रह गया। देखने में उसके मुँह में भले एक ही जीभ हो ,परंतु कार्य कुशलता में अनेक जीभों का स्वामी है। उसके पास मन भी एक नहीं ,अनेक मन हैं।जो निरंतर चलायमान और परिवर्तनशील हैं।मनुष्य में सरलता को ढूँढ़ पाना तो इस प्रकार है , जिस प्रकार चील के घोंसले में मांस नहीं ढूँढ़ पाना।
आज के मानव की स्थिति पर यदि विचार किया जाए तो जो जितना असरल, वक्र, चक्राकार और बनावटी है ,वह उतना ही ‘महान’ है।अब महानता के मानदंड सरलता, बच्चों जैसा भोलापन अथवा ज्ञान नहीं है, उसका प्रबल ढोंगी होना ही उसे देश, समाज और व्यक्ति की दृष्टि में महान बनाता है और वह इससे अपने घमंड में फूला नहीं समाता। वक्रता मानव की महानता का पर्याय बनती जा रही है। आज का मानव अपना काला इतिहास स्वयँ लिख रहा है। सरलता जैसे पानी भरने विदा हो चुकी है। कलों का प्रतियोगी मानव कलों से भी दस कदम आगे चलने में योजनाबद्ध रूप से संलग्न है।द्वंद्व ,फंद, धोखा, काइयाँपन, पर उत्पीड़न, प्रदर्शन, (फ़ोटो, वीडियो, टीवी ,अखबार आदि माध्यम) आज के सरलता से कोसों दूर मानव के पर्याय हैं। किस विनाश की ओर अग्रसर हो रहा है वह, अनिश्चित भविष्य के गर्भ में है।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम्’