कविता

वारिधर

किसकी विरह में वारिधर  फट पड़ा,
क्यों चुपके से सारी रात वो रोता रहा,
अवनी का प्रेम भी कुछ कम ना था,
आगोश में उसके बादल भी लिपटा रहा|

ना जाने वह कौन सा वियोग था,
अवनी बादल का मिलन एक संयोग था,
निशा भी नैनभर मूक देखती रही,
या इस मिलन का खामोशी से सहयोग था|

साक्ष्य है यह धरा और पल्लवित पुष्प,
जो कल तक थी बेजान और शुष्क,
मन मयूर करने लगा है नर्तन,
पुलकित द्रुम  दल उल्लास से युक्त|

उर  के पीर दृग के नीर बह गए,
मंद पवन सहला के कुछ कह गए,
इंद्रधनुषी आवरण से रंगी धरा,
बादल के निशाँ जमीन पर रह गए|

— सविता सिंह मीरा 

सविता सिंह 'मीरा'

जन्म तिथि -23 सितंबर शिक्षा- स्नातकोत्तर साहित्यिक गतिविधियां - विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित व्यवसाय - निजी संस्थान में कार्यरत झारखंड जमशेदपुर संपर्क संख्या - 9430776517 ई - मेल - [email protected]