समाधान के दोहे
उलझन को सुलझाइए,लेकर सुलझे भाव।
जिसके सँग है सादगी,रखता प्रखर प्रभाव।।
उलझन है मन की दशा,नहीं समस्या मान।
यह है दुर्बलता-दशा,आज हक़ीक़त जान।।
मन को रख तू नित प्रबल,उलझन होगी दूर।
जो रखता ईमान वह,नहीं खो सके नूर।
उलझन उसको ही डसे,जो सच में डरपोक।
कौन लगा सकता यहाँ,साहस पर तो रोक।।
उलझन को ना पालना,किंचित भी इनसान।
हर पल को तू साधकर,कर पूरे अरमान।।
उलझन इक नैराश्य है,नकारात्मक भाव।
रखना तू अहसास यह,संघर्षों का ताव।।
उलझन को ठेंगा दिखा,गा मस्ती के गीत।
मिले तुझे बंदे सदा,कदम-कदम पर जीत।।
उलझन हो सुलझी सदा,उलझाते हम-आप।
वह ना हो विचलित कभी,जो रखता है ताप।।
उलझन जाँचे आपको,तू ना जाना हार।
मानव है अति वेगमय,बोलो नित जयकार।।
जीवन है सीधा-सरल,मत होना तू वक्र।
उलझन है इक रास्ता,करे मार्ग को चक्र।।
— प्रो (डॉ) शरद नारायण खरे