कविता

कलाकार

कितना अजीब है न
कि हम भी कलाकार हैं
पर हमें कोई भाव ही नहीं देता,
शायद मेरे अंदर का कलाकार
किसी को नजर ही नहीं आता।
चलो कोई बात नहीं
मैं तो अपने शब्दों से मन के भावों में
कलम और स्याही से रंग भरता हूँ,
अपनी कला का प्रदर्शन दिन रात करता हूँ।
मुझे कलाकार होने का प्रमाण पत्र नहीं चाहिए
मैं स्वयं ही स्वतंत्र रहना चाहता हूँ
किसी के आदेश निर्देश से
मुक्त रहना चाहता हूँ,
अपने शब्दों की जादूगरी से
अपने कलाकार होने का
प्रमाण देना चाहता हूँ।
मैं भी तो कलमकार हूँ
दुनिया को दिखाना चाहता हूँ
शब्दों की बहुरंगी दुनिया में ही
जीवन बिताना चाहता हूँ,
मैं भी तो एक कलाकार हूँ
बस! यही तो कहना चाहता हूँ।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921