राजनीति

बचाने गए घर लुट न जाएं शहर

महाराष्ट्र का राजकीय जलजला आज देश के पेपर मीडिया से टीवी और सोशल मीडिया में सब जगह छाया हुआ हैं।जब से बीजेपी से अपना दामन दमन छुड़वा के दूसरों का दामन  थाम राजगद्दी पाने के लालच से पक्ष का नुकसान ही हुआ हैं।कितने ही प्रसंग हैं जिससे नुकसान हुआ हैं शिवसेना का,  पालघर में साधुओं की लांचिंग की घटना, सुशांत राजपूत की हत्या या आत्महत्या उसके संलग्न घटनाएं जैसे कंगना रनौत के साथ हुए दुर्व्यवहार,रिपब्लिक भारत के साथ हुआ अन्यायपूर्ण व्यवहार भी जाहिर ही हैं।उसके बाद सुशांत केस से सचिन वाजे और परमवीर सिंघ के संदिग्ध कार्यकलाप भी सब को मालूम ही हैं।उनकी सरकार में ही गृहमंत्री अनिल देशमुक का जेल जाना सब ही सरकार को बदनाम करने के लिए काफी हैं।
      इतना कुछ अन्याय कामों के साथ  साथ हिंदुत्व विरोध कार्य कर बालासाब ठाकरे के सिद्धांत जो पार्टी का हृदय था उसी को छोड़ना भी शिवसेना के लिए घातक साबित हुआ हैं।इन्हीं मुद्दों पर एकनाथ शिंदे ने विरोध किया और उनके साथ दूसरे 50 विधायक साथ हो लिए हैं।एकनाथ शिंदे ने जब आवाज उठाई तो दूसरे विधायकों ने भी साथ दिया और एक विद्रोह की परिस्थिति पैदा हो गई।
दूसरे अपनी पार्टी को वंशनुगत वारसा मन कांग्रेस की राह पर चलने की कोशिश उनका भी वह हश्र होगा जो कांग्रेस का हो रहा हैं।रही बात गठबंधन की तो एनसीपी तो ठीक बाकी कांग्रेस ने ते हाथ खड़े कर दिए हैं और कह दिया कि सपोर्ट के लिए तो शिवसेना ही आई थी।
 अब वक्रता देखें तो विरोध में खड़े विधायक सरकार गिराना ही नहीं पार्टी का नाम भी अपने नाम के साथ संलग्न करने की मांग कर रहे हैं क्योंकि वे ही लोग हैं जो बालासाब के सिध्धन्तों का अनुसरण कर रहे हैं इसलिए शिवसेना नाम उनकी पार्टी के साथ होना चाहिए ये उनकी मांग हैं अब क्या और कैसे बचाएंगे अपनी पार्टी के नाम को? यहां तक बोला गया कि अपने बाप का नाम लगा पार्टी के साथ इतनी कनिष्ठ वार्ताएं सिर्फ राजकरण में ही हो सकती हैं जो संभ्रांति से परे हैं।

जयश्री बिर्मी

अहमदाबाद से, निवृत्त उच्च माध्यमिक शिक्षिका। कुछ महीनों से लेखन कार्य शुरू किया हैं।फूड एंड न्यूट्रीशन के बारे में लिखने में ज्यादा महारत है।