कौशलता विकास में मातृभाषा मंत्र ज़रूरी
भारत की सांस्कृतिक विरासत हजारों वर्ष पूर्व की है, जिसे सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाया जा रहा है जो काबिले तारीफ है!! परंतु बीते कुछ दशकों से हम देख रहे हैं खासकर वर्तमान पीढ़ी में युवा और बच्चे इस हमारी सांस्कृतिक धरोहर, मूल्यों, सभ्यता,मातृभाषा हस्तशिल्पी, कौशलता, बौद्धिक कौशलता और उसकी क्षमता उदय करने के उच्चतम गुणों, मानकों, पौराणिक प्रथाओं को किनारे लगाने की ओर कदम आगे बढ़ा रहे हैं जो आने वाली पीढ़ियों के समय विलुप्तता के कगार पर होगी जिसे रेखांकित करना जरूरी है, इसलिए आज हम इन धरोहरों में से मातृभाषा रूपी विरासत की चर्चा हम इस आर्टिकल के माध्यम से करेंगे। बात अगर हम मातृभाषा की करें तो भारत एक एकता में अनेकता वाला खूबसूरत देश है जहां संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त बावीस भाषाएं हैं परंतु उससे परे सैकड़ों अन्य भाषाएं और हजारों उपभाषाएं प्रचलन में है जिसे आधुनिक प्रौद्योगिकी युग और पाश्चात्य संस्कृति के प्रकोप के चलते हम अंग्रेजी और राजभाषा हिंदी की ओर अग्रसर हैं हालांकि अंतरराष्ट्रीय स्तरपर दोनों भाषाएं महत्वपूर्ण और मूल्यवान हैं परंतु मेरा मानना है कि कोई व्यक्ति जितनी जल्दी कोई कौशलता ज्ञान, माननीय गुण, ज्ञान, तकनी की मंत्र, शिक्षा अपनी मातृभाषा में समझ सकता है उतनी जल्दी अन्य भाषा में नहीं समझ सकता! इसलिए ही कौशलता विकास का त्वरित लाभकारी परिणाम पाने क्षमता उदय करने, मातृभाषा में शिक्षा एक मजबूत नीव प्रदान करती है और रटनें वाले जमाने का अंत हो गया है।अब मातृभाषा के माध्यम से सबसे अच्छे कौशल मंत्रसे नवाचार करने को रेखांकित करना जरूरी है।
बातों ग्राम शिक्षा में मातृभाषा के उपयोग की करें तो मेरा मानना है कि हमारी शिक्षा प्रणाली में कम से कम स्कूली शिक्षा तक सरकारी और निजी विद्यालयों में पढ़ाई के माध्यम में मातृभाषा का उपयोग अनिवार्य होना चाहिए, क्योंकि छात्र स्कूलके अलावा बाकी समय अपने घर परिवार समाज में व्यतीत करते हैं जहां मातृभाषा का प्रचलन होता है इसलिए स्कूल स्तरपर शिक्षा व कौशलता को मातृभाषा में समझाने पर कई गुना तीव्रता से क्षमता उदय होती है और रटनें वाली पढ़ाई के युग का अंत होता है।
बात अगर हम दिनांक 29 जून 2022 को माननीय उपराष्ट्रपति द्वारा एक कार्यक्रम में संबोधन की करें तो पीआईबी के अनुसार उन्होंने कहा, प्राचीन गुरुकुल प्रणाली में शिक्षक अपने छात्रों के साथ समय बिताते थे और उनके बीच रहते थे, जिससे छात्र के चरित्र निर्माण व सही मूल्यांकन का अवसर मिलता था।, एक अन्य पहलू जिस पर हमें ध्यान देना चाहिए, वह स्कूली शिक्षा में मातृभाषा का उपयोग है। जहां तक संभव हो, कम से कम प्राथमिक स्तर तक सरकारी और निजी विद्यालयों में पढ़ाई का माध्यम मातृभाषा में होना चाहिए।
उन्होंने विद्यालयों में शिक्षा के माध्यम के रूप में मातृभाषा के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा,हमें छात्रों को अपने सामाजिक परिवेश में अपनी मातृभाषा में स्वतंत्र रूप से बोलने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। जब हम स्वतंत्र रूप से और गर्वके साथ अपनी मातृभाषा में बात कर सकेंगे, उस समय ही हम अपनी सांस्कृतिक विरासत की सही मायने में सराहना कर सकते हैं। इसके अलावा उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि अपनी मातृभाषा के अलावा अन्य भाषाओं में किसी की दक्षता सांस्कृतिक जुड़ाव के निर्माण में सहायता करती है और अनुभव के नए संसार के लिए खिड़कियां खोलती हैं।
हालांकि, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि किसी भी भाषा को थोपा नहीं जाना चाहिए और न ही इसका कोई विरोध होना चाहिए। उन्होंने सुझाव दियाकि यथासंभव भाषाएं सीखनी चाहिए, लेकिन मातृभाषा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। हमें छात्रों को उनके सामाजिक परिवेश में- विद्यालय परिसर में, सभी सांस्कृतिक कार्यक्रमों में और अपने घर में स्वतंत्र रूप से अपनी मातृभाषा में बोलने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। जब हम स्वतंत्र रूप से और गर्व के साथ अपनी मातृभाषा बोल सकेंगे, उस समय ही हम सही मायने में अपनी सांस्कृतिक विरासत की सराहना कर सकते हैं।
उन्होंने रटने वाली पढ़ाई को छोड़ते हुए शिक्षा के लिए भविष्यवादी दृष्टिकोण अपनाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा, सबसे अच्छा कौशल, जो विद्यालय आज छात्रों को प्रदान कर सकते हैं, वह अनुकूलन क्षमता है। उन्होंने विद्यालयों से छात्रों को आत्मचिंतन करने और अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग करके नवाचार करने को लेकर प्रशिक्षित करने के लिए कहा। उन्होंने इस बात को याद किया कि भारत की प्राचीन गुरुकुल प्रणाली शिक्षक के बच्चों के बीच समय बिताने के साथ एक व्यक्ति के समग्र विकास पर केंद्रित थी। इसमें छात्रों के चरित्र निर्माण और सही मूल्यांकन पर जोर दिया गया था। उन्होंने विद्यालयों से गुरु शिष्य परंपरा के सकारात्मक पहलुओं को अपनाने पर जोर दिया। इसके अलावा, पाठ्यक्रम व पाठ्येतर गतिविधियों के बीच कृत्रिम अलगाव को दूर करने और शिक्षा में बहु-विषयकता को प्रोत्साहित करने का भी आह्वान किया।
उन्होंने कक्षा की पढ़ाई को क्षेत्रीय गतिविधियों, सामाजिक जागरूकता और सामुदायिक सेवा पहलों के साथ पूरक बनाए जाने की अपनी इच्छा व्यक्त की, कि कम उम्र से ही छात्रों में सेवा और देशभक्ति की भावना पैदा करने की सख्त जरूरत है जो मेरा मानना है कि मातृभाषा का अधिकतम प्रयोग करने से उस अनुरूप ढालने में हम सामर्थ्य साबित होंगे।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि कौशलता विकास में मातृभाषा मंत्र ज़रूरी है। रटनें वाली पढ़ाई का जमाना गया,अब मातृभाषा के माध्यम से सबसे अच्छा कौशल मंत्र से नवाचार करने को रेखांकित करना जरूरी हैं। कौशलता विकास का त्वरित लाभकारी परिणाम पाने, क्षमता उदय करने, मातृभाषा में शिक्षा एक मज़बूत नीव प्रदान करती है।
— किशन सनमुखदास भावनानी