देश की खातिर
जवानी में जवां होकर जिए जो देश की खातिर
समय आया तो देदी जान अपने देश की खातिर
नहीं चिंता की माँ की , बाप की ,भाई व बहनों की
पत्नी बाल -बच्चे छोड़ गए वो देश की खातिर
गए सीमा पे भूखे रह के भी की देश की सेवा
जंग में ,पहाड़ पर गए वो देश की खातिर
संभाला मोर्चा अपना चाहे गर्मी या सर्दी हो
वर्षा में भी सीमा पर रहे वो देश की खातिर
बड़ी मुस्तैदी से ही ख्याल रखते हैं वो सीमा पर
समझते शत्रु की हर चाल अपने देश की खातिर
जुबान पर उफ़ न करते चाहे कितनी मुश्कलें आएं
रहे आजाद हिन्दोस्तान चाहते देश की खातिर
अगर बलिदान हो जाएँ तो उनको ग़म नहीं होता
अमर हो जाते हैं वे जवान अपने देश की खातिर
— डा केवलकृष्ण पाठक