कहानी

वसीयत

मनीष कबीर को लेकर घर आ गया। अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद कबीर ज़िद कर रहा था वापिस रिक्शा चलाने की लेकिन मनीष ने उसकी एक नहीं सुनी और अपने बंगले के अतिथि कक्ष में ले जाकर उसका सामान रख दिया। सामान के नाम पर भी एक छोटे से थैले में उसके एक जोड़ी कपड़े ही थे। बंगले में कबीर असहज महसूस कर रहा था। इतने सुविधा जनक घर में रहने की उसे आदत नहीं थी। वातानुकूलित कमरे में उसे घुटन महसूस होती थी। बस एक ही सुकून भरी जगह थी जहां वह अधिक समय बिताता था, पुस्तकालय में। मनीष के पिता पढ़ने के शौकीन थे इसलिए अपने बंगले में उन्होंने एक पुस्तकालय भी बनवाया था। जिसमें सभी अच्छी पुस्तकें थी। मनीष की मम्मी और चाचा नहीं चाहते थे कि कबीर घर में रहे। एक महीना भी पूरा नहीं हुआ था मनीष के पिता की मृत्यु को। किसी अजनबी को घर में रखकर, घर का पूरा भेद उसे देना था। मनीष दिन में एक बार कबीर के पास अवश्य जाता था। गपशप करता, साथ में बैठकर चाय पीता,कोई किताब पढ़ता या कोई पुरानी फिल्म देखता और वापिस आ जाता। जाने क्यों बड़ा सुकून मिलता था उसे कबीर के पास होने से। उसकी बातें, उसके विचार  किसी रिक्शा वाले के बिलकुल नहीं थे। मनीष यही जानना चाहता था कि इतना सभ्य व्यक्ति रिक्शा चलाने वाला कैसे हो सकता है ? मनीष के पिता के बारे में कबीर बहुत कुछ जनता था। रोज़ ही उनके बारे में बात होती। इतनी बातें मनीष उनके जीते जी भी नहीं जान पाया था। पिता बहुत व्यस्त रहते थे । मनीष बोर्डिंग स्कूल में पढ़ाई करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए विदेश चला गया था। विदेश से वापिस आया तो पिता चाहते थे कि वो अपनी कंपनी में काम करना शुरू करे। लेकिन एक सामान्य कर्मचारी की तरह। मनीष अपने बलबूते पर कोई दूसरी नौकरी ढूंढ रहा था। अपनी ही कंपनी में नौकर बनना उसे पसंद नहीं था। पिताजी अपने आदर्शों पर अड़े थे और मनीष अपनी ज़िद पर। जिस समय उसके पिता को दिल का दौरा पड़ा वह अपने दोस्तों के साथ दक्षिण भारत भ्रमण पर गया हुआ था। सूचना मिलने पर वापिस आया लेकिन पिता उससे पहले ही दुनिया को छोड़ चुके थे। कबीर को भी उसके पिता के साथ ही अस्पताल में भर्ती कराया गया था लेकिन अस्पताल की फीस नहीं चुका पाने के कारण उसको छुट्टी नहीं दी गई थी। मनीष को जब पता चला तो उसने कबीर का अस्पताल का बिल देकर उसकी छुट्टी करवाई। जब कबीर ने बताया कि वह उसके पिता की कंपनी में ही काम करता था तो मनीष उसे घर ले आया था। शायद अपने पिता को खो देने के दुख से उबरने के लिए।
कबीर को घर में आए एक महीना पूरा होने वाला था। मां और चाचा रोज़ ही पूछ लेते थे कि वह कब घर से जायेगा ? मनीष चुप रहता। आज सुबह उसके कमरे में गया तो वह नहीं था। लॉन में, पुस्तकालय में कहीं भी नहीं था।
मनीष ने घर के नौकरों से भी पूछताछ की लेकिन कबीर कहीं नहीं मिला। मनीष उदास हो गया। खुद को समझा रहा था कि जब पिता ही नाराज़ होकर चले गए तो किसी अनजान से कैसे उम्मीद की जा सकती है कि वो घर से जाए तो मनीष को बताकर जाए। एक दिन सुबह सोते उठते ही मनीष ने अखबार देखा तो उसके होश उड़ गए। उसके पिता की कंपनी किसी विदेशी कंपनी ने खरीद ली थी जिसका मालिक एक भारतीय मूल का व्यक्ति था। वह शानदार बंगला जिसमे मनीष का परिवार रहता था, नीलाम होने वाला था। पिता को खोने का क्या मतलब होता है, यह आज मनीष समझ पा रहा था। कंपनी के सीईओ ने फोन करके बताया कि कंपनी के नए मालिक आज आने वाले हैं। मनीष आज पहली बार अपनी कंपनी के कार्यालय में खड़ा था। मिस्टर खुशवंत, नए  मालिक उसके पिता की कुर्सी पर विराजमान थे। उन्होंने कुर्सी उल्टी की हुई थी। उसी तरह बैठे बैठे बोले,” मिस्टर मनीष, आपका स्वागत है, आपकी कंपनी में। मुझे पता चला है आप पहली बार कार्यालय में आए हैं। कृपया बैठिए।”  मनीष बैठना नहीं चाहता था लेकिन सीईओ के इशारे पर उसे बैठना पड़ा। मिस्टर खुशवंत ने कुर्सी सीधी कर ली। मेज़ पर रखा एक कागज़ मनीष की ओर बढ़ा दिया। मनीष ने कागज़ हाथ में लिए बिना ही कहा,” मैं जानता हूं सर, आप हमारी कंपनी खरीद चुके हैं। यदि हो सके तो बंगले की नीलामी रुकवा दें। मुझे थोड़ा समय चाहिए अपने परिवार के लिए दूसरी व्यवस्था करने के लिए। पिताजी चले गए हैं। यह सब सुनकर मां भी विचलित हो जाएंगी। पढ़ा लिखा हूं, जल्द ही नौकरी ढूंढ लूंगा और अपने परिवार का इंतज़ाम कर लूंगा।” मिस्टर खुशवंत कुर्सी से खड़े हुए, कागज़ उनके हाथ में था। ,” एक नौकरी इस कंपनी में भी है, अगर आप उचित समझे तो।” उन्होंने प्रश्नवाचक निगाहों से मनीष की ओर देखा। ,” जी नहीं श्रीमान, मैं किसी दूसरी कंपनी में काम कर लूंगा। आप दे सकते हैं तो थोड़ा समय दीजिए बस।” कहकर मनीष चलने के लिए उठा। ,” एक महीना तो दे ही सकता हूं, आपका अहसान भी तो चुकाना है मनीष साहेब।” मनीष चलते चलते पीछे मुड़ा ,” कैसा अहसान ?” मिस्टर खुशवंत मुस्कुराए। ,” मेरे पिता कबीर चंद को अपने घर में एक महीना रखकर जो आपने मुझ पर किया है।” मनीष हैरान था साथ ही खुश भी, कबीर की सूचना मिलने पर। “अभी कहां पर वो ?” मनीष खुद को रोक नहीं पाया। साथ ही हैरान था यह जानकर कि एक रिक्शा वाले ने इतनी बड़ी कंपनी खरीद ली थी। खुशवंत ने उसकी बात का जवाब दिया,” दो दिन बाद भारत वापिस आ रहे हैं। आपसे अवश्य मिलेंगे। वो रिक्शा चलाया करते थे फिर तुम्हारे पिताजी ने उन्हें कंपनी में काम दिया। उनकी लगन देखकर  तुम्हारे पिताजी ने उन्हें विदेश में एक कंपनी खोलकर उन्हें उसका डायरेक्टर बना दिया। अभी पिछले महीने उन्होंने मेरे पिता को अचानक भारत बुला लिया। एक दुर्घटना हुई और वो अस्पताल में तुमसे मिले।” मनीष सब सुन रहा था। अचानक बोला,” फिर बिना बताए चले क्यों गए ?” मिस्टर खुशवंत हंस पड़े ,” भाई हमेशा के लिए तुम्हारे पास आ रहे हैं। विदेश का काम मैं संभाल लूंगा।” मनीष इतने दिनों में पहली बार मुस्कुराया था। वह चलने को हुआ तो मिस्टर खुशवंत ने फिर आवाज़ लगाई ,” मनीष ये लेकर जाओ, तुम्हारे पिताजी की वसीयत है।” मनीष ने भारी मन से कागज़ हाथ में पकड़ा। उस पर बस इतना ही  लिखा था।,” तुम्हारे ऑफिस में तुम्हारा स्वागत है, बेटा। मुझे पता था एक दिन तुम यहां ज़रूर आओगे।” नीचे मनीष के पिता के हस्ताक्षर थे।
— अर्चना त्यागी

अर्चना त्यागी

जन्म स्थान - मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश वर्तमान पता- 51, सरदार क्लब स्कीम, चंद्रा इंपीरियल के पीछे, जोधपुर राजस्थान संपर्क - 9461286131 ई मेल- [email protected] पिता का नाम - श्री विद्यानंद विद्यार्थी माता का नाम श्रीमति रामेश्वरी देवी। पति का नाम - श्री रजनीश कुमार शिक्षा - M.Sc. M.Ed. पुरस्कार - राजस्थान महिला रत्न, वूमेन ऑफ ऑनर अवॉर्ड, साहित्य गौरव, साहित्यश्री, बेस्ट टीचर, बेस्ट कॉर्डिनेटर, बेस्ट मंच संचालक एवम् अन्य साहित्यिक पुरस्कार । विश्व हिंदी लेखिका मंच द्वारा, बाल प्रहरी संस्थान अल्मोड़ा द्वारा, अनुराधा प्रकाशन द्वारा, प्राची पब्लिकेशन द्वारा, नवीन कदम साहित्य द्वारा, श्रियम न्यूज़ नेटवर्क , मानस काव्य सुमन, हिंदी साहित्य संग्रह,साहित्य रेखा, मानस कविता समूह तथा अन्य साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित। प्रकाशित कृति - "सपने में आना मां " (शॉपिजन प्रकाशन) "अनवरत" लघु कथा संकलन (प्राची पब्लिकेशन), "काव्य अमृत", "कथा संचय" तथा "और मानवता जीत गई" (अनुराधा प्रकाशन) प्रकाशन - विभिन्न समाचार पत्रों जैसे अमर उजाला, दैनिक भास्कर, दैनिक हरिभूमि,प्रभात खबर, राजस्थान पत्रिका,पंजाब केसरी, दैनिक ट्रिब्यून, संगिनी मासिक पत्रिका,उत्तरांचल दीप पत्रिका, सेतू मासिक पत्रिका, ग्लोबल हेराल्ड, दैनिक नवज्योति , दैनिक लोकोत्तर, इंदौर समाचार,उत्तरांचल दीप पत्रिका, दैनिक निर्दलीय, टाबर टोली, साप्ताहिक अकोदिया सम्राट, दैनिक संपर्क क्रांति, दैनिक युग जागरण, दैनिक घटती घटना, दैनिक प्रवासी संदेश, वूमेन एक्सप्रेस, निर्झर टाइम्स, दिन प्रतिदिन, सबूरी टाइम्स, दैनिक निर्दलीय, जय विजय पत्रिका, बच्चों का देश, साहित्य सुषमा, मानवी पत्रिका, जयदीप पत्रिका, नव किरण मासिक पत्रिका, प दैनिक दिशेरा,कोल फील्ड मिरर, दैनिक आज, दैनिक किरण दूत,, संडे रिपोर्टर, माही संदेश पत्रिका, संगम सवेरा, आदि पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशन। "दिल्ली प्रेस" की विभिन्न पत्रिकाओं के लिए भी लेखन जारी है। रुचियां - पठन पाठन, लेखन, एवम् सभी प्रकार के रचनात्मक कार्य। संप्रति - रसायन विज्ञान व्याख्याता एवम् कैरियर परामर्शदाता।