गीतिका/ग़ज़ल

आफताब

उस जहां में हिसाब होगा…..होने दीजिए ।
इस जहां में बेखौफ बेहिसाब जी लीजिए ।।
यूं तो महफ़िल में लगाम कोई हिसाब नहीं,
जिंदगी जश्न समझ…बेहिसाब पी लीजिए ।
बहुत हुआ रुख़ से नकाब हटाइए आहिस्ता,
जमाने में जीना है तो..बे नकाब हो लीजिए ।
इंसान को हथकड़ी…बंदर के हाथ में छड़ी,
वक्त ने करवट बदला बेलगाम हो लीजिए ।
तवा और ताव गर्म है…..हथौड़ा मारना है,
वतन हो या इश्क़ हो…..बेताब हो लीजिए ।
इश्क़ की पंचम हो या आजादी की ज़श्न हो,
ज़िंदाबाद जिंदगी से  बे नायाब  हो लीजिए ।
किरण चाहे सूर्य की हो या आशाओं की हो,
चौदहवीं का मेहताब आफताब हो लीजिए ।
शराब…शबाब…कबाब…..यह शौक़ ही है,
ज़िंदादिल रहना है तो बे हिजाब हो लीजिए ।
आपकी दरबार और सरताज का जवाब नहीं,
दुनियां में लहराए परचम लाज़वाब हो लीजिए ।
— मनोज शाह ‘मानस’

मनोज शाह 'मानस'

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