दिल में आता है
दिल में आता है चुपके से, तन्हाई में कहीं खो जाअूं मैं
बचा कर नज़रें अपने आप से, कहीं दूर निकल जाअूं मैं
मजबूरियां मेरी ज़िन्दगी की, अैसा करने देती नही मुझे
बस में नही है मेरे वरना अैसा, ज़रूर ही कर लूं मैं
महसूस की जिये मेरी मायूसी को, मेरी आँखों में देख कर
ग़म बुहत सारे बसे हैं दिल में, बात यह क़बूल करता हूं मैं
बुहत देख लिया मैं ने इस ज़माने को, मदहोशी के आलम में
नहीं देखना चाहता अब मैं इसे, जब होश में आ चुका हूं मैं
बुहत ही शिद्दत से तोडे गैये हैं, ख़्वाब जो देखे थे मैं ने
ख़ूबसूरत कैसे दिखे यह दुनिया, जब उदास ही रहता हूं मैं
मन्ज़िल तो एक ही थी मगर, फ़ासले बढते ही गए बीच में
बुहत तकलीफ़ देते हैं रास्ते, इनसे जब भी गुज़रता हूं मैं
बाशिन्दा बन गिया हूं मैं, अब तो रंज ओ ग़म की बस्ती का, मदन
ग़नीमत नही है यह क्या, कि फिर भी आज तक ज़िन्दा हूं मैं
परेशान करना नही चाहता, अब भी मैं किसी को दुनिया में
ताबीर देखकर अपने ही ख़्वाबों की, बहुत ही शरमिन्दा हूं मैं