मुक्तक/दोहा

मुक्तक

मानसून आगमन

प्रकृति करने लगी नर्तन बरसने ज़ब लगे बादल l
थिरकने तब लगा यह मन बरसने जब लगे बादल l
हुई तपती धरा शीतल खिले तरु जल रहे थे जो,
छिड़ी फिर तान झींगुर की बरसने ज़ब लगे बादल l
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उमंगे सिर उठाती भावनाओं की लहर उठती l
महक मेंहंदी की भीनी कामानाओं की लहर उठती l
है हरियाली चहूँ दिस और बूंदें झिलमिलाती हैं l
है आह्लादित प्रकृति बागों में झूलों की लहर उठती l
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सघन घन देख बागों में मयूरी नृत्य करती है l
पापीहे गीत गाते हैं प्रकृति दुल्हन सी सजती हैं l
दरख्तों से भरी धरती से खुशियाँ लाज़मी जग में,
प्रकृति खुशहाल होती ज़ब सभी संताप हरती हैl

मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल ‘
लखनऊ

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016