आतिथ्य सत्कार मज़बूती से निभाएं
वर्ष 1959 में रिलीज हुई पैगाम फिल्म में गायक लेखक कवि प्रदीप का गीत इंसान को इंसान से हो भाईचारा, यही पैगाम हमारा, यही पैगाम हमारा गीत को इंसानी रिश्ते मजबूत करने के परिपेक्ष में खासकर युवाओं को सुनना चाहिए क्योंकि वह हमारे भविष्य हैं क्योंकि खूबसूरत अनमोल पृथ्वी पर भारत देश की हजारों वर्ष से यह अनमोल वसीयत रही है कि हमारी हमारे पूर्वजों सहित हम अपने निजी और सार्वजनिक रिश्तो को निभाने में वैश्विक स्तरपर सर्वश्रेष्ठ रहे हैं। मेरा मानना है कि हमारी अनेक विरासतों में से एक परिवार, समाज, राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय समुदाय में खूबसूरत सकारात्मक रिश्ते कायम रखने में भारत को महारत हासिल है। हम भारतवासी संबंधों को कायम रखने में आने वाली बड़ी से बड़ी समस्याओं को शांतिप्रिय, सकारात्मक वाणी, व्यवहार, ह्रदय से समाधान की ओर ले जाते हैं जो हमारे लिए वैश्विक स्तरपर प्रतिष्ठा का प्रतीक है परंतु आज के बदलते परिपेक्ष में रिश्ते निभाने के अनेक गुणों में सहनशीलता, सहिष्णुता, उद्धारदिली माफ़ी का जज्बा, छोटा देखने कीदरियादिली में अपेक्षाकृत पायदान से नीचे घसने की ओर बढ़ रहे हैं, जिसे तात्कालिक रेखांकित करना जरूरी है इसलिए आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से आओ रिश्ते, आतिथ्य सत्कार मजबूती से निभाने पर गंभीरता से चर्चा करेंगे।
बात अगर हम वर्तमान परिपेक्ष में सिकुड़ते परिवारों, टूटते रिश्तों, बढ़ती वैचारिक खाई की करें तो, आजकल जहां देखो वहीं छोटी छाटी बातों पर टकराव और विवाद नजर आते हैं। फिर चाहे स्थान हमारा घर हो, ऑफिस या फिर व्यापारिक क्षेत्र, कारण मतभिन्नता हैं। जिसके चलते सास बहू के बीच खींचा तानी, पति पत्नी में बहस , पिता पुत्र का झगड़ा और चाहे बॉस एम्प्लौयी के बीच झड़प होती है। कई बार इन समस्याओं से परेशान होकर हम रत्न धारण कर लेते हैं, लेकिन सिर्फ रत्न पहनने से या कोई जप करने मात्र से वे संबंध नही सुधर सकते। हमारे संबंध अपने आचरण और अपने व्यवहार में परिवर्तन से सुधरेंगे, तभी हम संबंधों में मधुरता ला पाएंगे, याने बात सह गए तो रिश्ते रह गए बात कह गए तो रिश्ते ढह गए।
बात अगर हम रिश्तो को गंभीरता से संभालने जोड़ने की करें तो सहनशीलता सहिष्णुता और त्याग का मंत्र अपनाना होगा। यदि हम पीड़ित है तो हमें स्वयं से परेशानियां होती हैं, जानबूझकर गलतियां दोहराई जाती है। जिसका उपाय स्वयं से मैत्री करें, आत्मनिरीक्षण करें स्वयं की गलतियों और खूबीयों को पहचान कर जातक स्वयं की उन्नति कर सकता है। पीड़ित होने से कुटुंब परिवार समाज में विवाद बने रहते हैं। बात बात पर कलह की स्थिति बनती रहती है। इससे उबरने के उपाय हैं, अहंकार दबाकर, सबसे विनम्रता से पेश आएं। छोटों से प्यार करें, बराबर वालों से मित्रता और बड़ों के प्रति सम्मान प्रदर्शित करें।.. संस्कृति के श्लोक में भी आया है कि, अरावप्युचितं कार्यमातिथ्यं गृहमागते। छेत्तुः पार्श्वगताच्छायां नोपसंहरते द्रुमः॥
अर्थ-शत्रु भी यदि अपने घर पर आ जाए तो उसका भी उचित आतिथ्य सत्कार करना चाहिए, जैसे वृक्ष अपने काटने वाले से भी अपनी छाया को कभी नहीं हटाता है।
बात अगर हम रिश्तो में पड़ोसियों की करें तो, कहते हैं कि पहला सगा पड़ोसी होता है, क्योंकि जब भी व्यक्ति पर कोई मुसीबत आती है तो उसके सगे-संबंधी व रिश्तेदार तो बाद में पहुंचते हैं, लेकिन पड़ोसी तुरंत मदद के लिए आता है। इसलिए कहा जाता है कि हर व्यक्ति को अपने पड़ोसियों से अच्छे संबंध बनाकर रखने चाहिए। लेकिन आज के समय में हम खुद में कुछ इस कदर व्यस्त हो गए हैं कि हमें अपने आसपास रहने वाले लोगों का ख्याल ही नहीं आता। यहां तक कि जब भी रिश्तों की बात आती है तो हम पति, बच्चे या परिवार को ही महत्ता देते हैं। पड़ोसियों के साथ आपसी संबंधों को मधुर बनाने के बारे में शायद ही कोई सोचता हो। हालांकि उनके साथ भी रिश्ता उतना ही महत्वपूर्ण होता है।
बात अगर हम रिश्तो को समय देने की करें तो, आज के समय में किसी भी रिश्ते के कमजोर होने की एक मुख्य वजह होती है समय का अभाव। खासतौर से, शहरों में तो बहुत से लोगों को यह तक पता नहीं होता कि उनके पड़ोस में कौन रहता है। इसलिए पड़ोसियों के साथ बेहतर संबंध स्थापित करने के लिए आप थोड़ा समय निकालें। अगर आप कुछ खास व अलग बनाते हैं, तो अपने पड़ोसियों के साथ शेयर करें। इस तरह आपको उन्हें जानने का मौका मिलेगा। इसके अलावा आप चाहें तो उनके साथ एक मार्निंग वॉक का रूटीन भी बना सकतें हैं।गॉसिप करते-करते आपकी वॉक भी हो जाएगी। याद रखें कि किसी भी रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए थोड़ा समय निकालने की जरूरत होती है।
बात अगर हम रिश्तो में कर्मचारियों और बॉस की करें तो, ऑफिस में कर्मचारी और बॉस के बीच मधुर संबंध होना सभी पक्षों के लिए एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, अगर हम अपने बॉस से अच्छे कामकाजी रिश्ते बनाकर रखते हैं तो इसका सकारात्मक प्रभाव हमारे करियर ग्रोथ पर पड़ता है।बॉस से हेल्दी रिलेशन बनाने का यह मतलब कतई नहीं है कि हम इस बात का फायदा उठाएं, हमेशा ध्यान रखें कि हम अच्छे कर्मचारी तभी कहलाएंगे जब हम अपनी सीमा में रहकर काम करेंगे, काम के प्रति सजग रहेंगे. वहीं बॉस के लिए भी ये जरूरी है कि वो भी अपने कर्मचारी के साथ अपने रिश्ते को हेल्दी रखें। दोनों के बीच मधुर संबंध हमारे वर्क प्लेस के लिए फायदेमंद सिद्ध होगा साथ ही इसके सकारात्मक प्रभाव पड़ेंगे।
बात अगर हम रिश्तो में वैवाहिक जीवन की करें तो, कुछ लोगों के वैवाहिक जीवन में आये दिन जरा जरा सी बातों को लेकर अनबन होती रहती है । एक साथ रहने, एक दूसरे का हमेशा साथ देने का वादा करने वाले पति पत्नी जब मौका मिले छोटे बच्चों की तरह लड़ाई झगड़े करने लगते हैं । कभी कभी तो इनका विवाद तलाक तक पहुंच पाता है, और खुशहाली से भरा पूरा परिवार बिखर जाता है।
बात अगर हम रिश्तो को समझने की करें तो, रिश्ते को बदलने से समस्या का समाधान जरूरी नहीं है। देर-सबेर हम किसी भी अन्य रिश्ते में एक ही स्थिति में होंगे, क्योंकि सभी रिश्तों में सबसे महत्वपूर्ण है हमारी अपनी भावनाओं की समझ, हमारा अपना मन, स्थिर होने की हमारी अपनी क्षमता, और देखने की हमारी अपनी क्षमता चीजों को व्यापक दृष्टिकोण से। और इसके लिए ज्ञान महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह ज्ञान ही है जो हमको जीवन में शक्ति, स्थिरता और व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करता है। अधिकांश समय, हम एक संपूर्ण स्वस्थ संबंध के लिए कहीं और देखते हैं; बहुत कम लोग अपने भीतर देखते हैं, जहां से वे संबंधित हैं। एक अच्छा रिश्ता बनाने के लिए, हमको सबसे पहले यह देखना होगा हम खुद से कैसे संबंधित हैं। हमको अंदर देखने की जरूरत है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि
अरावप्युचितं कार्यमातिथ्यं गृहमागते।
छेत्तुः पार्श्वगताच्छायां नोपसंहरते द्रुमः।।
आओ रिश्ते, आतिथ्य सत्कार मजबूती से निभाए,बात सह गए तो रिश्ते रह गए-बात कह गए तो रिश्ते ढह गए, कुछ कह गए कुछ सह गए कुछ कहते कहते रह गए मैं सही तुम गलत के खेला में न जाने कितने रिश्ते ढह गए यह सराहनीय विचार है।
— किशन सनमुखदास भावनानी