तेरी आंखों में
कहां हो निगाहें करम ढूंढते हैं।
तुम्हें रात दिन हर कदम ढूंढते हैं।
अभी तो दिखाई दिये मेरे ज़ानिब,
निगाहों का अपने भरम ढूंढते हैं।
तेरे दिल में उतरे यूं सांसों के साथ,
मिलेगा सुकूं जो सनम ढूंढते है।
नहीं अब बसर है बस रहगुजर,
मिले दर से जो वो रहम ढूंढते हैं।
आराईश किया रुह का इस तरह,
तेरी आंखों में खुद को हम ढूंढते।
— पुष्पा ” स्वाती “