नेता के देश में नागरिक (व्यंग्य)
भारत संकट के दौर से गुजर रहा है। यह इस देश की नीयती है। इसका वर्तमान हमेशा कंटकाकीर्ण ही रहा है। क्या करें? मुग़लों ने लूटा। अंग्रेजों ने अत्याचार किया। स्वतंत्रता के बाद जनता राजा बन गयी। फिर अपने बाप का राज आ गया। जिसके बाप का राज आता है वह नेता बन जाता है। पहले धर्मात्मा लोग नेता बनते थे। देश के लिए सर्वस्व न्यौछावर करते थे। वे अमर हो जाते थे। खून लेकर आज़ादी देने का वचन देते थे। अब खून पीकर प्राण लेने की धमकी देते हैं। आजकल पहले आत्मा ,आत्महत्या करती है। फिर वह नेता के शरीर में वास करती है। जीवित आत्माधारी कभी नेता नहीं बन सकता।
आजादी के बाद देश ने विपुल प्रमाण में नेताओं का उत्पादन किया है। यह शस्य श्यामला भूमि अब अन्न कम और नेता अधिक पैदा करती है। किसान धरती में बीज बोने जाता है, और नेता बनकर लहलहा जाता है। यदि नेता नहीं बन पाता और किसान ही रहता है तो फाँसी के फंदे पर लटकने को विवश हो जाता है। अनेक प्रकार के नेता इस दिव्य धरा पर अंकुरित, पुष्पित और पल्लवित होते रहे हैं। जैसे – किसान नेता, छात्र नेता, मज़दूर नेता, दलित नेता, धार्मिक नेता, ब्राह्मण नेता, मुस्लिम नेता, सामाजिक नेता, मराठा नेता, जाट नेता, असामाजिक नेता। और तो और हिजड़ों के नेता। नेताओं के मामले में देश आत्मनिर्भर हो गया है। हमारे नेताओं की क्वालिटी अब विश्वस्तरीय हो गयी है। हम निर्यात के योग्य माल पैदा करने लगे हैं। एकदम ब्रांडेड! मैक इन इंडिया!!!
इस देश में नेता बनने की प्रक्रिया दो प्रकार से होती है। पहले प्रकार का नेता किसी ‘नेता टाइप खानदान’ में जन्म लेता है। उसे एक पली-पोषित विरासत या साम्राज्य मिलता है। जिसमें चारण-भाट, चाटुकार-चापलूस, चमचे आदि प्रकार के निकृष्ट जीव होते हैं। ये लोग उलटी-सीधी ऊटपटांग बात पर वाह-वाह करते हैं। उसकी हौसला अफजाई कर उसे देश का उज्ज्वल भविष्य बताते हैं। उसकी काली करतूतों का यश गान करते हैं। सत्याग्रह जैसे राजनैतिक अनुष्ठान करते हैं। दूसरे प्रकार के नेता के जन्म की क्रिया वही होती है, जो अंडे से मेंढ़क बनने की होती है। जो हमने कक्षा आठवीं में जीवशास्त्र की पुस्तक में पढ़ी थी। इस प्रकार का नेता मेढ़क बनते ही टर्राने लगता है। फुदकना इसकी जन्म जात प्रवृत्ति होती है। इसलिए यह फुदक-फुदककर जीवनपर्यंत पार्टी बदलता रहता है। एक प्रकार से यह नेता के रूप में वेश्या की योनि में जीता है। संभवतः वह आर्थिक या शारीरिक रूप से असंतुष्ट रहता है। है। किसी भी बात पर असंतुष्ट होने का शाश्वत गुण होता है। इस प्रकार के नेता में रंग बदलने की अद्भुत कला होती। वह गिरगिट का भी गुरू होता है।
नेतागिरी इस देश में एक लाइफ टाइम अचिवमेंट है। यह कुटीर उद्योग से आरंभ होकर बृहत् उद्योग की ऊँचाई तक जाता है। इस प्रकार के व्यक्ति को पता नहीं होता कि वह पेपर बेचते-बेचते, अखबार बाँटते, ऑटो चलाते-चलाते, मंदिर की घंटी बजाते -बजाते, कबाड़ का धंधा करते-करते या चाय पिलाते-पिलाते एक दिन सत्ता-सुंदरी का वरण करेगा। कुछ विलक्षण जीवधारी तो अपराधी बनकर जेल जाते हैं और केंचुली बदलकर नेता के रूप में बाहर निकलते हैं। गरीबों के देश में यही एक ऐसा पद है जो किसी शिक्षा और सनद का मोहताज नहीं। पाँच साल के लिए कुर्सी के साथ बलात्कार कर लीजिए, हो गया जिंदगी भर के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़। कबीर बाबा ने ऐसे ही नेताओं के ही लिखा था और मुझसे सार्वजनिक न करने का वचन लिया था। पर आज क्षमा याचना सहित वह दोहा उद्घाटित कर रहा हूँ-
मसि कागद छुयो नहीं, कलम गही नहीं हाथ।
हम कछु भी करते नहीं, पर हैं सबके बाप।।
उस दिन कुछ साहित्यिक मित्र मुझसे निवेदन करने लगे कि साहित्य के खेत में भी नेता रूपी फसल उगनी चाहिए इसलिए आप यह गुरुतर भार वहन करें। मैंने कहा यह दुष्कर्म मुझसे पहले अनेक कलम के योद्धा कर चुके हैं। परिणाम- या तो अच्छे नेता नहीं बन सके या अच्छे लेखक। मैं तो अभी साहित्य की मरूभूमि से झाँकनेवाला नवाकुंर हूँ। क्यों मेरी भ्रूण हत्या करने पर तुले हो भाई! मेरी आत्मा अभी ज़िंदा है। उसे साँसें लेने दो। जब आत्महत्या कर लेगी, तब सूचित कर दूँगा। मैं एक अच्छा इंसान बन सकूँ यही मेरे लिए काफी है। देश को अच्छे नेताओं की नहीं, एकअच्छे नागरिक की अधिक ज़रूरत है।
— शरद सुनेरी