धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

मायूसी

चार दोस्त आपस में एक दूसरे के जिगरी दोस्त हैं जो एक दूसरे के साथ सच्ची दोस्ती भी निभाते हैं। इन चारों दोस्तों के नाम बहुत अहम है।
पहला दोस्त   उम्मीद
दूसरा दोस्त    सब्र
तीसरा दोस्त   रहमत
चौथा दोस्त    ईमान
और चारों दोस्त अल्लाह के बहुत क़रीब भी नजर आते हैं। लेकिन इन चारों दोस्तों की एक दुश्मन भी है जिसका नाम मायूसी है। एक दिन उम्मीद का झगड़ा मायूसी से होता है और मायूसी उम्मीद से कहती है कि मैं सब पर भारी हूं। लेकिन उम्मीद तो उम्मीद है उम्मीद कहती है कि तुम तो सिर्फ़ इंसानियत को खोखला बनाने के अलावा और कोई काम नहीं करती और वह जो तुम्हारा साथी  ग़म है न इंसान को खा जाता है इसलिए तुमको हमारी फे़हरिस्त में नहीं रखा गया। इस बात पर मायूसी कहती है तुम लोग तो बेबस हो सिर्फ़ अपने अल्लाह से दुआ के अलावा और कर ही क्या सकते हो मुझे देखो मैंने इंसान को अपने बस में कर रखा है जो शराब, नशाखो़री, जुआ, चोरी, डकैती, मारकाट, झगड़ा, फसाद और ख़ून ख़राबा के चपेट में है इनसे मेरा पेट भरता है यह सब के सब हमारी खु़राक हैं। इस पर सब्र को बहुत गुस्सा आता है और मायूसी से कहता है दुआ मोमिन का हथियार है। सब्र कहता है कि मैं पूरी दुनिया पर ग़ालिब आ गया मेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता मैंने अपनी ताक़त से बड़े बड़े कारनामे जीते हैं। तुम मायूसी बेशक अंधेरे की मानिंद हो और हर होने वाली अंधेरी रात के बाद चमकती हुई सुबह ज़रूर होती है। दरमियान में दोस्त ईमान आकर कहता है हमारे नबियों को अल्लाह ने आज़माईश में डाला और सख्त़ मराहिलो मुश्किलात से गुजा़रा गया लेकिन उन्होंने अपने ईमान पर डाका नहीं डाला और सब्र का दामन मज़बूती से हमेशा थामे रहे।बड़ी-बड़ी जंगों में आसानी के साथ फतेह हासिल की फिर रहमत आकर बोलती है कि आखि़र अल्लाह ने उन पर अपनी रहमत बरसानी ही शुरू कर दी और आख़िर मायूसी तेरा ही ज़वाल आ कर रहा यानी अब तेरी ज़िन्दगी बहुत कम है। फिर उम्मीद कहती है कि ऐ मायूसी अगर तू इंसान के लिए आधी मौत है तो यह मत भूलना मैं भी इंसान पर आधी जिंदगी बनकर गा़लिब हूं।
तब रहमत कहती है कि बेशक कितनी भी मुश्किल पेश आ जाएं लेकिन हमेशा यही सोचो कि सब ठीक हो जाएगा और हां मायूसी से हारना नहीं चाहिए बल्कि मायूसी को हरगिज़ हरा देना चाहिए। और उम्मीद तो बड़े काम की चीज़ है यह तो सबको संभाल कर रखती है। और ईमान कहता है की मायूसी ईमान की कमजो़री है और कुफ़्र है।

कु़रआन में अल्लाह फ़रमाता है।

*ला तक़नतू‌ मिर रह़ मतिल लाह*

*अल्लाह की रहमत से कभी मायूस नहीं होना चाहिए।*

इसलिए सबसे अहम‌ बात यह है की इंसान को कभी भी मायूस नहीं होना चाहिए। बल्कि मुश्किलात के आने पर, मायूसी के अंधेरों में भी उम्मीद और सब्र का दामन थामे रखिए सब्र एक सवारी है जो हर मुश्किल में‌ बड़ी आसानी के साथ इस रास्ते को पार कर वाता है। और मुश्किलात का एक एक लम्हा भी जा़या़ नहीं होने देता और हर मुश्किल लम्हात के साथ अपने दोस्त रहमत को ज़रूर लेकर आता है। और फ़िर यह चारों दोस्त मिलकर उम्मीद, सब्र, रहमत और ईमान अपनी दुश्मन मायूसी का गला घोंट देते हैं। और हम सब मिलकर अल्लाह के फ़ज़लो करम से कामयाबी की मंजिल तै कर लेते हैं।

— असमा सबा ख़्वाज

असमा सबा ख़्वाज

लखीमपुर खीरी यूपी ईमेल - [email protected]