मोबाइल
भूले बचपन आज, हाथ पकड़े मोबाइल।
रखते अपने पास, तभी वे करते स्माइल।।
खेल खिलौने दूर, नहीं बाहर है जाते।
मोबाइल में गेम, सभी बच्चो को भाते।।
रिश्तों से अनजान, कहाँ अब दोस्त बनाते।
रखते दूरी लोग, इसे ही गले लगाते।।
बिन मोबाइल आज, नहीं खाना भी खाते।
रोते बच्चे देख, उसे कार्टून दिखाते।।
दादी बोले रोज, कहानी किसे सुनाऊँ।
पोता पोती दूर, पास कैसे मैं लाऊँ।।
बिगड़े बचपन देख, खूब दादा चिल्लाते।
नहीं मानते बात, रूठ कमरे घुस जाते।।
मोबाइल है खास, पास बैठे जब देना।
होते ही सब काम, उसे वापस है लेना।।
करना अच्छी बात, सीखते बच्चे सारे।
जैसे दो संस्कार, वही अपनाते प्यारे।।
— प्रिया देवांगन “प्रियू”