गज़ल
हंसता हूँ तो आँखों में नमी महसूस होती है
न जाने दिल को क्यों तेरी कमी महसूस होती है
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सुनाओ मत महफिल में तुम अपने दर्द के किस्से
किसी के गम से लोगों को खुशी महसूस होती है
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नहीं है तू कहीं मेरे खयालों के सिवा हमदम
फिर क्यों हर तरफ तू हर घड़ी महसूस होती है
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कुछ ऐसे ज़ख़्म होते हैं जो भर तो जाते हैं लेकिन
खलिश उनकी हमें ता-ज़िंदगी महसूस होती है
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झुक जाए किसी का सर जिसकी बंदगी में खुद
तेरे चेहरे पे वो पाकीज़गी महसूस होती है
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आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।