कविता

आनंद धन

रवि किरण सुनहरी, प्रेमरस भीनी,
प्राची से आयी मुस्कुराती भोर रमणी,
सृष्टि की छटा अनुपम मनोहारिणी,
कण कण आह्लाद, चेतना सुहासिनी।।
ओढ़ धानी चूनर, धरा मतवाली,
निरंतर बहती जलधारा मनचली,
रंगबिरंगे फूलों से सजायी रंगोली,
तितलियां इतराये सुंदर रंगरंगिली।।
प्रकृति की महफ़िल है सजी धजी,
प्रणय बीन मधुर फिजा में है गूंजी,
पुष्पित मन संग  प्रियतम हमजोली,
सुरमई संगीत, स्वर लहरियां अलबेली।
कंक्रीट अट्टालिकाओं में नव-सृजन,
महका गुलाब, लहराये मस्त पवन,
हॄदय पुलकित, मन मोर करे नर्तन,
उल्लसित प्रकृति, बांटे आनंद धन।।

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८