बढ़ती जनसंख्या का दुनिया पर गहरा संकट
शास्त्रों में कहा गया है “अति सर्वत्र वर्जयेत्” । अति हर चीज की बुरी होती है। आवश्यकता से ज्यादा होना दुष्परिणाम का कारण बनता है। तीव्रर गति बढ़ती जनसंख्याा के कारण आज विश्व संकट के दौर से गुजर रहा है। अनेक चुनौतियोंं का सामना कर रहा है। इस धरती पर पैदा होने वाले हर इंसान को उत्तम जीवन चाहिए। यह सही भी है क्योंकि उसका अधिकाार भी है किंतु वर्तमान में स्थिति बहुत गंभीर है। दुनिया के सभी राष्ट्र ही नहीं बल्कि पूरीी दुनिया चिंतित है। इसी चिंता को लेकर 11 जुलाई 1987 कोो दुनिया में 500 करोड़ के बच्चे ने जन्म लिया तब यूनाइटेड नेशंस ने इस विश्व में विस्फोटक समस्या पर चिंता करते हुए 11 जुलाई 1989 से विश्व जनसंख्या दिवस के रूप में मनाने का फैसला लिया। तब से प्रतिवर्ष 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस के रूप में मनाया जाता है। दुनिया में सबसे ज्यादा जनसंख्या चीन में है। इस चुनौती को स्वीकार करते हुए चीन ने सन 1979 में एक संतान की नीति को लागू किया था। उसे उसमें सफलता भी मिली और वह आगे भी बढ़ा। विश्व जनसंख्या में भारत दूसरे स्थान पर है। यह भारत के लिए चिंता का विषय है। आज भारत की आबादी विश्व जनसंख्या का 17. 7% है। बढ़ती जनसंख्या के कारण राष्ट्र अनेक चुनौतियों से जूझ रहा है।
कुछ लोगों की मान्यता है कि घर में ज्यादा लोग हो तो सहुलियत रहती है। घर में आमदनी बढ़ जाती है।किंतु खर्च और चुनौतियां भी बढ़ जाती है इस बात को भी हमें समझने की जरूरत है। कुछ लोगों का(अंधविश्वासीयों)मानना है कि संतान तो ऊपर वाला दे रहा है लेकिन एक संतान का सही रूप से पालन पोषण में राष्ट्र का कितना खर्चा होता है। कितना नुकसान उठाना पड़ता है इस बात को भी समझने की जरूरत है।जनसंख्या में क्वांटिटी के बजाय क्वालिटी होनी चाहिए। धरती पर सिर्फ मनुष्य के रूप में पैदा होना ही सार्थकता नहीं है बल्कि एक आदर्श इंसान बनकर जीना ही बेहतर जीवन है। आज मानव अपनी मूलभूत आवश्यकता( रोटी, कपड़ा ,मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य तथा रोजगार) की पूर्ति ही नहीं कर पा रहा है। राष्ट्र अपनी बेहतरीन नीतियां लागू करने में आज सक्षम नहीं है।
आज राष्ट्र को चिंता और चिंतन करने की आवश्यकता है। चीन की तरह “हम दो हमारा एक” के नारे को अपनाने की जरूरत है। इस कहावत को और मजबूत करने की जरूरत है “शेर का बच्चा एक ही अच्छा।”विश्व के सारे देश इस बात को गंभीरता से लें कि विश्व महामारी में ज्यादा जनसंख्या वाले देशों को जनधन की सर्वाधिक हानि हुई है। उनका इलाज, ऑक्सीजन की किल्लत को सबने देखा है। विश्व का यह ताजा प्रमाण है।कम जनसंख्या हो तो राष्ट्र अपने प्रति व्यक्ति आय, रोजगार को बढ़ाने में सक्षम हो सकता है। गरीबी और बेकारी से हर जन को बचाने का संकल्प समाज राष्ट्र और विश्व लें। आज प्रति व्यक्ति आय में दिनोंदिन कमी होती जा रही है। राष्ट्र की ताकत मानी जाने वाली युवा पीढ़ी अपने रोजगार की चिंता में पीस रही है।आज देश की आजादी के 75 साल बाद भी हम राष्ट्र को विकसित नहीं बना पाए। आज हमारा राष्ट्र वैश्विक भुखमरी में सूचकांक 2021 में 101वें स्थान पर है। बढ़ती जनसंख्या की वजह से अपराधों में कमी नहीं आ रही है।
भारत में 1000 पुरुषों पर 944 महिलाएं है। बताया जा रहा है। महिला पुरुष का भेद बना हुआ है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 6 जुलाई 2022 को हमारे देश की जनसंख्या 1अरब 40 करोड़ 71लाख99हजार 129 हैं। सचमुच में यह आंकड़े डराने वाले हैं।राजस्थान राज्य की जितनी जनसंख्या है उतनी थाईलैंड देश की है। बताया जा रहा है कि 2021 में नवंबर में विश्व की जनसंख्या 7.9 अरब पहुंच गई हैं। विश्व में सर्वाधिक जनसंख्या एशिया में निवास करती है।एशिया में विश्व की 36% जनसंख्या निवास करती है।माना जा रहा है कि प्रतिवर्ष दुनिया में 800 महिलाएं बच्चों को जन्म देते समय काल के ग्रास में समा जाती है।
राष्ट्र आत्मनिर्भर तब बन सकता है जब उस राष्ट्र की आय एवं उत्पादन के अनुपात में जनसंख्या हो। प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हो। हर व्यक्ति के हाथ में काम हो। आपदा और विपदा के समय व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के पास उचित प्रबंध हो।तभी भारत जैसे राष्ट्र की सरकारी पंचवर्षीय योजना सफल हो सकती है। जब उसके बजट में प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय आय में वृद्धि होगी, राष्ट्रीय उत्पादन और संसाधनों में उचित वृद्धि हो देश में पैदा होने वाले हर बच्चे को राष्ट्र संभालने में सक्षम हो व उचित जिम्मेदारी लेने में सक्षम हो तभी राष्ट्र आत्मनिर्भर बन सकता है। आज राष्ट्र के विकास की शक्ति को बढ़ती जनसंख्या विरुद्ध कर रही है। बढ़ती जनसंख्या के कारण में महिला अशिक्षा, रूढ़िवादी धार्मिक सोच लोगों की मानसिकता यह भी है कि बुढ़ापे में बैठा ही सहारा होता है। वंश वृद्धि हेतु पुत्र होना आवश्यक है। ऐसी अनुचित धारणा से भी जनसंख्या वृद्धि हो रही है।बुजुर्ग पीढ़ी युवा पीढ़ी को संदेश दे और संकल्प दिलाए कि एक संतान के बजाय ज्यादा संतान पैदा करने से व्यक्ति समाज और राष्ट्र को मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। रात में करोड़ों तारे उदय होकर भी एक चांद का मुकाबला करने में सक्षम नहीं है।
— डॉ. कान्ति लाल यादव