गज़ल
महक उठी है कहीं फिरसे रातरानी क्या
लौट आई दोबारा मेरी ज़िंदगानी क्या
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देख के ताजमहल ये सवाल उठा दिल में
गरीब के इश्क की भी है कोई निशानी क्या
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लुटा तो दी रंगीनियों का मज़ा लेने में
थी इसी काम के लिए तेरी जवानी क्या
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वो जैसे चाहे मुझे इस्तेमाल करता है
मेरी मंजूरी क्या और मेरी आनाकानी क्या
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दिल थर्राया, ज़मीं हिल गई अचानक से
किसी मासूम आँख से गिरा है पानी क्या
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इश्क करके क्यों एहसान जताता है मुझे
कर रहा है मुझपे कोई मेहरबानी क्या
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आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।