पढ़ाई के लिए हाॅस्टल सही या घर
प्राचीन काल में बच्चों को गुरूकुलों में शिक्षा दी जाती थी ताकि विद्यार्थी घर के उन्मुक्त वातावरण एवं समस्त आकर्षणों से दूर रहे और एकान्त में एकाग्रचित होकर पढ़ाई कर सकें। आज के युग में इस प्रकार के गुरूकुल तो सम्भव नहीं पर हाॅस्टलों की व्यवस्था जरूर है। पर कहाँ गुरुकुल का शिस्त सभर वातावरण और कहाँ आजकल की होस्टलें।
आज अधिकतर अभिभावक असमंजस में रहते है कि बच्चों की शिक्षा के लिए घर का माहौल सही होता है, या हाॅस्टल का। जैसे हर चीज़ के दो पहलू होते है वैसे हाॅस्टल के वातावरण के बारे में भी यही कह सकते है। एक बात तो है की सारा दारोमदार बच्चों की परवरिश और उनकी निर्णय शक्ति पर होता है।
“पँक से करके भी प्रीत कुमुद निर्मल निश्चल रह पाता है, जैसी सोहबत वैसी असर कथन का खंडन कर जाता है”
कमल किचड़ में खिलकर भी अपनी सुंदरता बरकरार रखता है वैसे ही वातावरण चाहे कैसा भी हो, जो छात्र एक लक्ष्य के साथ हाॅस्टल में रहते है उन पर वातावरण का असर नहीं होता।
ज़्यादातर लोगों का सोचना है कि हॉस्टल में रहकर बच्चें उच्छृंखल हो जाते है, बिगड़ जाते है। हाॅस्टल का स्वतंत्र माहौल बच्चों को लापरवाह और गलत दिशा में ले जाता है। पर ये गलत बात है, स्वतंत्रता का दुरुपयोग करने वाले कुछ ही बच्चें होते है, जो बिगड़ जाते है। वह जिन्हें घर में सख़्ती और हर बात पर पाबंदी वाला वातावरण मिला हो या दूसरों का अंधा अनुकरण करने की आदत हो। हॉस्टल में रहने वाले बच्चों को विचार करना चाहिए कि उन्हें उनके माता-पिता ने बड़े विश्वास के साथ भविष्य निर्माण हेतु भेजा है कुछ बनने के लिए और अपना भविष्य सँवारने हेतु भेजा है।
बच्चे अपने जीवन में कुछ करे, आगे बढ़े इसके लिए माँ-बाप बच्चों को हॉस्टल में भेजते तो है। पर बच्चों को हॉस्टल में डालने से पहले कई बातों का ध्यान रखना चाहिए। सबसे पहले तो बच्चों की मर्ज़ी जानिए क्या वो हाॅस्टल में रहने के लिए मानसिक रूप से तैयार है। उसके बाद हॉस्टल का माहौल कैसा है, वहाँ का स्टाफ कैसा है, हॉस्टल के वार्डन का बच्चों के प्रति व्यवहार कैसा रहता है, वहाँ के कमरे कैसे हैं, जहाँ हॉस्टल है वहाँ के आस-पास का माहौल कैसा है, हॉस्टल का खान-पान कैसा है, सुरक्षा की क्या व्यवस्था है और सबसे बड़ी बात कि उस हॉस्टल में कोई गलत गतिविधियां तो नहीं होती ऐसी ही कुछ छोटी-मोटी बातों का हॉस्टल का चुनाव करते समय ध्यान रखना चाहिए।
आजकल हाॅस्टलों में रैगिंग से लेकर बहुत सारी गंदगियां पनपती रहती है। बच्चें छुप-छुपकर शराब, सिगरेट पीने लगते है और मोबाइल पर पोर्नोग्राफ़ी विडियो देख-देखकर रेड़ लाईट एरिया की मुलाकात भी ले लेते है। और ड्रग्स माफ़िया भी हाॅस्टल के आस-पास अपना कारोबार बढ़ाते बच्चों को ड्रग के व्यसनी बना देते है। रैगिंग कमज़ोर मानसिकता वाले बच्चों को अवसाद का भोग बनता देती है।
हाॅस्टल में रहकर पढ़ाई करना गलत नहीं आत्मनिर्भरता की प्रथम सीढ़ी है, जहाँ आत्मविश्वास, मिलनसारिता, सहयोग जैसे गुणों का विकास होता है। बस जरूरत है थोड़ी सावधानी बरतने की। खासकर लड़कियों को हाॅस्टल में भेजने से पहले बहुत सारे मुद्दों को ध्यान में रखना पड़ता है। कभी-कभी उनके साथ गलत भी हो सकता है। पर सकारात्मक सोच रखें तो छात्रावासी लड़कियों का अपना एक स्वतंत्र व्यक्तित्व होता है, जिसमें आत्मनिर्भरता, आत्मसम्मान, निर्णय क्षमता और आत्मज्ञान जैसे गुणों का विकास होता है। इसलिए हाॅस्टल में रही लड़कियाँ जीवन के हर क्षेत्र में अपनी भूमिका बड़ी सफलतापूर्वक निभाती है। सामाजिक उत्तरदायित्व बखूबी निभाती है। वहाँ माँ का आँचल और पिता की छत्रछाया नहीं मिलती, घर के आत्मीय वातावरण से परे हॉस्टल में कठोर धरातल का सामना होता है, क्योंकि यहाँ किसी तरह का सहारा नहीं होता, इसलिए पराधीनता आत्मनिर्भरता में बदल जाती है इसलिए स्वावलंबन में हॉस्टल की भूमिका उल्लेखनीय है।
हॉस्टल की सुरक्षा व्यवस्था के बारे में माँ-बाप को पूरी जानकारी रखनी चाहिए। गार्ड कैसे हैं, वार्डन कैसी है उसका व्यवहार बच्चों के प्रति कैसा रहता है। क्योंकि आजकल हॉस्टल में जो वारदातें हो रही है उसमें गार्ड और वार्डन की भूमिका मुख्य होती है। इसलिए सुरक्षा के बारे में पूरी जानकारी रखें।
बच्चों को हाॅस्टल भेजने के बाद इन बातों को रखना रखना चाहिए जैसे, सिर्फ पढ़ाई की जानकारी ही न लें पूरा दिन क्या करता है, कहाँ जाता है ये भी पूछें। अकेलापन महसूस न होने दें, बच्चों के पर्सनल लाइफ के बारे में जानकारी लेते रहिए और उसके दोस्तों से सम्पर्क बनाएं रखिए। बच्चों की हर गतिविधियों पर नज़र रखिए।
खासकर किसी ओर के बच्चे के साथ तुलना करके परीक्षा में अधिक प्रतिशत मार्क्स लाने का दवाब बिलकुल न ड़ालें।
यही वजह होती है कि बच्चे तनाव में आकर आत्महत्या कर लेते हैं। अगर अभिभावक बच्चों से हॉस्टल में रहने, खाने के अलावा अन्य टॉपिक पर बात करें तो शायद बच्चों को होने वाली दिक्कतें समय पर पता चल जाए और आत्महत्या की घटनाएं भी कम हाे जाएगी।
छात्रावासी लड़कियों तथा लड़कों के बारे में कहा जाता है कि वे घर से दूर रहकर आत्मिक स्तर पर भी दूर हो जाते है तथा घर की जिम्मेदारी उठाने से कतराते है या अक्षम रहते है, परंतु यह बात गलत है। घर से दूर रहने पर ही घर का महत्व समझ में आता है और बच्चें आत्मनिर्भर बन जाते है।
हाॅस्टल में पढ़ाई की स्वतंत्रता होती है, जब इच्छा करे तब पढ़ें, किसी तरह की रोक-टोक या दबाव नहीं होता। इसलिए पढ़ाई के प्रति अरुचि नहीं होती। यहाँ स्पर्धा की भावना विकसित होती है, जो पढ़ाई के प्रति लगाव पैदा करती है। विचारों के आदान-प्रदान की जो सुविधाएँ हाॅस्टल में मिलती है वह घर में नहीं मिलती। इसलिए सही वातावरण मिले तो पढ़ाई के लिए हाॅस्टल लाइफ़ बहुत सुविधाजनक होती है। बदी और अच्छाई हर जगह होती है, हाॅस्टल लाइफ़ बच्चों को बिगाड़ भी सकती है और सँवार भी सकती है, बच्चों की समझ पर निर्भर करता है कि वह कौनसी राह चुनना चाहते है।
— भावना ठाकर ‘भावु’