करुण रुदन करता अब मन,
पर उसके बिना इसे सुने कौन?
मौन पड़ा है जीवन का हर क्षण,
उसके बिना मुझे पूछे कौन?
जिसके साथ हर ख्वाब देखा,
उसके बिना भीगी हृदय की पीड़ा अब जाने कौन?
लाल जोड़े और सिन्दूर के सपने को दस बरस निहारा,
उसके बिना इन सफेद बेरंग कपड़ों को निखारे कौन?
जो जिन्दगी था वो तो छूट गया,
अब इस संसार मे हमारा कौन?
वैराग्य की राह पर चलती देह,
मुझ मरी हुई देह का मृतक-कर्म अब करे कौन?
— रेखा घनश्याम गौड़