ग़ज़ल
चेतना जड़ की निशानी आदमी।
मगर सांसों की कहानी आदमी।
देखने को बहुत लम्बी लगती है,
पर बड़ी छोटी कहानी आदमी।
जिंदगी में क्या क्या बंदा भूलता,
भूल नहीं सकता जवानी आदमी।
पर ज़रूरी है चिता तक का सफ़र,
आख़री तोहफा है फानी आदमी।
रब्ब की कृपा से जीवन है सदा,
मौत से मांगे ना पानी आदमी।
उम्र के अंतिम पलों में बैठ कर,
याद फिर करता है बाणी आदमी।
जिंदगी के बीच सुषमा बांटता,
लेता है सत्कार दानी आदमी।
बरकतें थीं, रहमतें थीं बहुत,
भूले गया बेशक चवानी आदमी।
वृद्धावस्था में करें ऊटपटांगियां,
बात करता है पुरानी आदमी।
दुःख मुसीबत,बालमां ,आ जाने पर,
ग़ैर भी बन जाए जानी आदमी।
बलविंदर बालम