सौंदर्य
चूल्हे पर खाना पकाते
बच्चों की चिंता करते
घर को व्यवस्थित रखते
मंहगाई की चादर से बाहर
जाते हुए पांव को समेटते
व्रत तथा तप के साथ
सुरक्षा कवच पहनाने का
प्रयत्न करते हुए
किसी के दुःख में दुखी
और किसी के सुख में खुश
होते हुए
पुराने दरके हुए कपड़ो को
तुरपाई करते हुए
अतिथियों के स्वागत के लिए
तत्पर श्रम के बूंदों से सजे
माथे को देख कर
बरबस ही सौंदर्य की
परिभाषा याद आ जाती है ।
— रचना के वर्मा