लघुकथा

दीपू

दीपू…… आ जा बेटा, गुस्सा नही करते , खा लो मम्मा ने देखो कितने प्यार से बनाया है, “दीपू ! चलो नहा लो”, “दीपू !शाम को हम गार्डन में घूमने चलेंगे “
दीपू!….दीपू!….दीपू !..
                              .”यह  नयी पड़ोसन  अपने बेटे से कितनी बातें करती रहती” ….ऑफिस के लिए तैयार होते हुए अमित से रीना ने कहा, “अच्छा है न , बच्चों से बात – चीत करते रहना चाहिए “!  तुम्हारे बच्चे छोटे थे तो तुम भी तो पूरे दिन उनके पीछे भागती ही रहती थी ! हंसते हुए अमित ने कहा, और ऑफिस के लिए निकल गया।
                                 ओह, मांजी आपने अभी तक नाश्ता नही किया ? नही, बहू यह पोहा मुझे अच्छा नही लगता , कुछ और बना दो ..……, मांजी, “आप देख नही रही मुझे कितना काम है ?” जो बना है खा लीजिये लगभग डांटते हुई सी आवाज पड़ोस से आयी ….…. रीना को अजीब लगा पर फिर वह काम में लग गयी , दुनियाभर का काम तो खुद के जिम्में है भला दूसरे की गृहस्थी में क्या चल रहा देखने की फुर्सत कहाँ ?….. सच बात भी है बच्चों के चक्कर में कभी -, कभी बड़े,बुजुर्ग उपेक्षित हो  ही जाते है …….. रीना ने सोचा ।
                         आज तो सुबह – सवेरे से ही पड़ोस के घर से तरह -तरह की आवाजें आने लगी  हाय ! हाय ! दीपू मेरा दीपू किधर चला गया ??
                                                     इतना शोरगुल सुन रीना उठ कर भागी बाहर पड़ोसी के घर भीड़ लगी थी …….पड़ोसन पछाड़ खा खा गिरी जा रही थी , उनकी यह हालत देख मिसेज सिंह से ले कर मिसेज शर्मा तक उनको संभाले जा रही थी । …. सुबकते हुए पड़ोसन ने रीना से कहा,!  आज सुबह -सुबह ही रोज की तरह मेरे पास आ कर बैठा और खेल रहा था … ….  देखिए दो घण्टे हो गए उसे देखे हुए …….. जाने किस हालत में होगा मेरा बच्चा कहाँ होगा ?
                रीना भी उनकी हालत देख परेशान हो गयी धीरज  बंधाते हुए उसने कहा, भाभी जी परेशान मत होइए आस- पास ही खेलते हुए निकल गया होगा मिल जाएगा कभी – कभी बच्चे….. अभी उसके वाक्य पूरे भी नही हुए थे कि तभी दरवाजे पर शोर मचा मिसेज पांडे के पति  गोद में छोटे से गोल मटोल  कुत्ते के बच्चे को उठाये हुए घर मे घुसे …..लीजिये भाभी जी अपने दीपू को संभालिये सड़क पर मिल गया और बच गया वरना बाहरी कुत्ते तो जाने क्या करते ? ….
                                     रीना तो चौंक गयी !! “हे भगवान! इस कुत्ते का नाम  दीपू है जिसे इतने दिन से मैं इनका बेटा समझ रही थी !”
— रचना के वर्मा

रचना वर्मा

जन्मस्थान- गोरखपुर, उत्तर-प्रदेश शिक्षा- एम.ए, अर्थशास्त्र, बी.एड कुछ वर्ष अध्यापन कार्य लेखन में रुचि के कारण कुछ समाचार पत्रिकाओं में ब्लॉग तथा लेख लिखे और फेसबुक पर अपना अंगना मैगजीन से जुड़ कर छंद, माहिया, दोहे और हाइकु जैसी विधाओं से परिचय हुआ । प्रकाशित लेख - संग्रह " कही- अनकही" वर्तमान पता- मुम्बई rachna_ varma@ hotmail.com