आकर देखो प्यारे बापू , हिंद किस ओर है जा रहा।
बहुत तरक्की की देश ने, अपना अपनों को खा रहा।
देश चलाने वाले यहाँ पर, कुर्सी के लिये मर मिट रहे,
भूल कर आजादी को अब, है अपनी डफली बजा रहा।
जो पैदा नहीं उस वक्त हुए, वो क्या जाने इतिहास को,
उठाके उंगली उन नेताओं पे,राजनीति गंदी उछाल रहा।
दिया शांति उपदेश आप ने, अहिंसा का मार्ग दिखलाया,
सब एक दूजे को नोच रहे हैं, है कैसा जमाना आ रहा।
बुरा न देखो न बुरा सुनो ,कभी किसी को बुरा मत बोलो,
तेरे दिये सिद्धांतों के है, यहाँ उल्ट मानव जा रहा।
नंगे तन पर पहन के धोती, सदा साधा जीवन जीया था,
बढ़ी भूख नेताओं की अब, है मन चाहे वेतन पा रहा।
बापू दो नसीहत नेताओ को, समझ सकें अपनी मर्यादा,
गरीब जन हित की ही सोचें, क्यों इस देश को डूबा रहा।
— शिव सन्याल