गज़ल
चाहे थोड़ा फासला सा रहे,
मगर कोई सिलसिला सा रहे,
इलाज सारे कर के देख लिए,
ज़ख्म दिल का मगर हरा सा रहे,
मेरे सीने में कुछ तो जलता है,
आँखों में धुआं-धुआं सा रहे,
मुलाकातों से जी नहीं भरता,
जाते-जाते कुछ गिला सा रहे,
वो जितनी बार मुझे मिलता है,
हमेशा कुछ नया-नया सा रहे,
ना सही प्यार नफरत ही सही,
कोई रिश्ता तो बना सा रहे,
दिल जब भी खाली होता है,
जाने क्यों भरा-भरा सा रहे,
— भरत मल्होत्रा