गीतिका
पतझड़ में डाल से टूटा पत्ता यह अहसास कराता है,
जाना है सबको एक दिन, नये की आस कराता है।
टूटकर भी काम आ जाऊँगा, खाद- इंधन बनकर,
मानवता हित समर्पण रहेगा, विश्वास दिलाता है।
जब तलक जीवित रहूँगा, रिश्ते निभाता रहूँगा,
पिता का नाम जीवन पर्यंत, पुत्र का साथ निभाता है।
बारिश में तो सूखे शजर भी हरे हो जाते हैं, सच है,
बुढ़ापे में ठूंठ सा घर में बूढ़ा, सुरक्षा बोध कराता है।
— अ कीर्ति वर्द्धन