कविता

संतानों की उम्मीद

माँ कोख़ में रखती है संतानें
करवटें नहीं लेती ,
नौ माह बोझ सहती है
पिता देखता है एक एक पल
संतान की खुशी
के लालच में ,
अपने कीमती
वक्त भी बेच देता है
उसकी परवरिश के लिये
लौटा दो
दोनों का वक्त और सामान
जो तुम्हारे लिये
ख़रीद रखा था
एक खुशी में कर्ज लेकर
संतानें तुम भी वही
देखोगे
जो माता पिता ने देखा
तुम्हारे लिए
एक दिन ज़रुर होगा
उमर के पड़ाव
पार करते ही अहसास
जिंदगी के पलों का
सब गुजरते है
उसी पगडंडी से

— शिखा सिंह

शिखा सिंह

जन्मस्थल - कायमगंज स्नातकोत्तर- के.एन.कालेज कासगंज. प्रकाशन- विभिन्‍न पत्र पत्रिकाओं में आलेख एवं कविताएँ प्रकाशित जैसे - लखनऊ से, उत्कर्ष, लखनऊ से रेवान्त पत्रिका ,जनसंदेश टाईम्सअखबार,अग्रधारा पत्रिका, अनुराग ,अनवरत, कविता संग्रह, भोजपुरी पंचायत, लोक चिंतक कवि हम - तुम कविता संग्रह और अन्य पत्रिकाओं में भी प्रकाशित सृजन पोर्टल दिल्दी बुलेटिन पोर्टल अन्य !! सम्पर्क-जे .एन.वी.रोड़ फतेहगढ़ फर्रुखाबाद (उ प्र,) पिन कोड- 209601 e-mail [email protected]