कहानी

धरोहर

बुजुर्ग रमन जी अपनी पत्नी रेवा के साथ शाम की चाय बालकनी में बैठ कर पी रहै थे। अचानक कमरे से बच्चो की जोरदार हंसी सुनाई पड़ी, असल मे गर्मी की छुट्टी में बेटे बहू और बच्चे भी घर आये थे। दोनो पोते अक्षय और अभय नौंवी और दसवीं कक्षा में थे। रेवा देखने गयी, इतनो जोर से सब क्यों हंस रहे हैं, बच्चो ने जल्दी से कुछ छुपा लिया, और हंसी तेज़ हो गयी। रेवा ने बहुत पूछने की कोशिश की, पर जवाब मिला, “अरे, दादी, आप नही समझोगी, बहुत मज़ा आ रहा।”
और बहू जोर से बच्चो को डांट रही थी, बहुत बिगड़ गए हो, चुप रहो। पर बच्चे तो बच्चे है, अभय और अक्षय बेबाक हंसे जा रहे थे। रेवा की चाय बची थी, उसको पीने लौट आयी, तब कान में हल्की सी आवाज़ आयी, मेरी प्राणेश्वरी…….। और उल्टे पांव रेवा दौड़ पड़ी, उसको कुछ अंदेशा हुआ, ये लोग क्या कर रहे हैं। पहुँची तो देखा, रमन जी के लिखे प्रेमपत्र जो शादी के पहले उन्होंने लिखे थे, वो डब्बा उनके हाथ लग गया।
1975 में उन्हें प्यार हुआ था और घर के बुजुर्गों ने कोई कारण से दो वर्ष बाद विवाह होगा तय किया था। अपनी दूरी की व्यथा, पत्र के माध्यम से लेखनी से प्रेम ही लिखते था, दिन और रात की विरह गाथाएं एक सादे से कागज को प्रेम से रंगीन कर देती थी, जो किसी दोस्त, सहेली के जरिये भेजा जाता था। असल मे ये लोग जब आते सब अलमारियों की सफाई करते। आज रेवा की गलती से वो पत्र बहू के हाथ लगे, वो देख ही रही थी कि चंचल बच्चे सामने आ गए और छीन लिया।
उनके लिए ये नायाब चीज थी। क्योंकि आज के इंटरनेट युग मे जन्मे बच्चे चिट्ठी पत्री को क्या समझे, हर सेकंड में वो अपने प्रिय दोस्तो को भी हेलो, हाई करते रहते हैं।
रेवा ने जोर से डांटते हुए पत्र लेने की कोशिश करी, उसके जीवन की धरोहर को वो फटने भी नही देना चाहती थी। तभी देखा रमन जी भी सामने आकर देखने लगे और सब समझ मे आते ही, खिलखिलाकर हंस पड़े।
“अरे रेवा, अब क्या शरमाना, हमारे ही पोते हैं, इनको सब पता चल गया, कोई बात नही। पर गुस्सा तो तुमपर आ रहा, कैसे रखा था, जो इनके हाथ लगा, मैं माँगता था, तो बोलती थी, अब वो मेरी हो गयी, देखो मैंने कितने संभाल कर रखा है, तुम्हारे पत्र।”
“अरे, दादाजी, एक और आश्चर्य, बताइये कहाँ है?”
“नहीं वो नहीं मिलेगी।”
बहू ने कहा, “पर एक बात है, पापा, आजकल तो आप दोनो हर बात में बहस करते हो, आज पता चला भिंडी और करेला क्या बनेगा, इस पर बहस वालों भी इतना प्रेम करते हैं। चलो बच्चो, दादाजी से सॉरी बोलो।” पूरा परिवार खिलखिला रहा था।
— भगवती सक्सेना गौड़

*भगवती सक्सेना गौड़

बैंगलोर