ग़ज़ल
अपने बस की बात नहीं।
सूरज में प्रभात नहीं।
यह दिल कब का पत्थर है,
पत्थर में बरसात नहीं।
अपनी अदभुत किस्मत है,
दोपहर नहीं रात नहीं।
तेरी बहती नदिया में,
बह जाएं औकात नहीं।
वह रिश्ता भी क्या रिश्ता,
जिस में कुछ जज़्बात हीं।
तेरे मीठे होंठ सही,
उल्फ़त की खैरात नहीं।
बिखरे बादल क्या देंगे,
रिमझिम की बारात नहीं।
मारूस्थल की किस्मत में,
नदिया की सौगात नहीं।
मुद्दत हुई है, बलविंदर,
बालम, से मुलाक़ात नहीं।
— बलविंदर बालम