/ दुनिया को जोड़़कर देखो /
कभी – कभी जीवन में
बरसात आती है
आगे के कदम बढ़ने नहीं देती
डरावनी गर्जना होती है
चारों ओर पीड़ा की
दुःख की आँधी, तूफान आता है
आशाएँ फूँक जाती हैं
कठिन होता है उन्हें
समाज के साथ चलना,
सरल भी नहीं होता
अलग तरीके से रहना व
अपना रास्ता तय करके आगे बढ़ना,
कुछ लोग झुकते हैं और
कुछ लोग गिरते हैं
सब लोग जीवन को
एक जैसा नहीं लेते हैं
हरेक की अपनी – अपनी ताकत होती है
जीवन के उथल – पुथल को
अपनी हिम्मत से डटे रहने की
होती है कमजोरी भी
अपने आपको संभालने की
छोटी – सी बात पर हैरानी
बड़े – बड़े पेड़ जैसा कुछ होते हैं
जिनके अंदर शोध जारी रहता है वे
हर समय कुछ न कुछ सीखते रहते हैं
अपने आपको, मन की चेष्टा को
हर पल ध्यान से देखते हैं,
जो धीर – गंभीर होते हैं वे
समता के साथ चलते हैं
हर जीव की पीड़ा को
अपनी पीड़ा समझते हैं
सूनेपन की अवस्था में
हर तरह की पीड़ा को वे
आसानी से झेलते हैं
वर्ण,जाति,धर्म या संकुचित विचारों से
जो मुक्म होते हैं
साधारण धरातल पर
यथार्थ का अनुभव करते हैं
जरूर दुनिया को वे
अपना कुछ जोड़ते हैं
जिस दिशा में हवा बहती है
उस दिशा में वे नहीं चलते
समाज की दिशा बदलने में
वे सक्षम होते हैं।
— पैड़ाला रवींद्र नाथ।