कविता

/ दुनिया को जोड़़कर देखो /

कभी – कभी जीवन में
बरसात आती है
आगे के कदम बढ़ने नहीं देती
डरावनी गर्जना होती है
चारों ओर पीड़ा की
दुःख की आँधी, तूफान आता है
आशाएँ फूँक जाती हैं
कठिन होता है उन्हें
समाज के साथ चलना,
सरल भी नहीं होता
अलग तरीके से रहना व
अपना रास्ता तय करके आगे बढ़ना,
कुछ लोग झुकते हैं और
कुछ लोग गिरते हैं
सब लोग जीवन को
एक जैसा नहीं लेते हैं
हरेक की अपनी – अपनी ताकत होती है
जीवन के उथल – पुथल को
अपनी हिम्मत से डटे रहने की
होती है कमजोरी भी
अपने आपको संभालने की
छोटी – सी बात पर हैरानी
बड़े – बड़े पेड़ जैसा कुछ होते हैं
जिनके अंदर शोध जारी रहता है वे
हर समय कुछ न कुछ सीखते रहते हैं
अपने आपको, मन की चेष्टा को
हर पल ध्यान से देखते हैं,
जो धीर – गंभीर होते हैं वे
समता के साथ चलते हैं
हर जीव की पीड़ा को
अपनी पीड़ा समझते हैं
सूनेपन की अवस्था में
हर तरह की पीड़ा को वे
आसानी से झेलते हैं
वर्ण,जाति,धर्म या संकुचित विचारों से
जो मुक्म होते हैं
साधारण धरातल पर
यथार्थ का अनुभव करते हैं
जरूर दुनिया को वे
अपना कुछ जोड़ते हैं
जिस दिशा में हवा बहती है
उस दिशा में वे नहीं चलते
समाज की दिशा बदलने में
वे सक्षम होते हैं।
— पैड़ाला रवींद्र नाथ।

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), सेट, पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।