धार्मिक उन्माद और सामाजिक पतन
“धर्म मनुष्य के लिए है, ना कि मनुष्य धर्म के लिए”
जी हाँ, धर्म की परिभाषा से अनजान कुछ लोग आज धर्म की परिभाषा को ही भुला बैठे हैं। जबकि धर्म हमें एकता, अखंडता और एक दूसरे के प्रति प्रेम की भावना रखने की प्रेरणाा देता है। कुछ कट्टर धार्मिक संगठन इस पवित्र शब्द का देश और समाज में गलत इस्तेमाल कर रहे हैं। यह नहीं भूलना चाहिए की भारत एक लोकतांत्रिक देश है। और यह विभिन्न वर्ग, धर्म, जाति और संप्रदाय की डोर में बंधा है। राजनीतिक दल भी धार्मिक कट्टरता को बढ़ावा देने लगे हैं जो केवल हिंसा, अपराध और नफरत को जन्म देती है।
टकराव पैदा करना औचित्यहीन हर देश के उत्थान के लिए शांति और राष्ट्रहित के कार्यों को प्राथमिकता देना नितान्त आवश्यक है। हर देशवासी को चाहे वह किसी भी धर्म का अनुयायी हो सदैव देश की सुरक्षा और राष्ट्रहित को प्राथमिकता देते हुए अपने कार्य करने चाहिए। राष्ट्र की प्रगति में धर्म के नाम पर किसी भी तरह का टकराव उत्पन्न करने का कोई औचित्य नहीं। इन दिनों देश की जो प्रगति हो रही है और जो विश्वव्यापी सम्मान हमें मिल रहा है, वह कुछ राष्ट्रों और निहित स्वार्थी मनोवृत्ति वाले लोगों को हजम नही हो पा रहा है। इसके फलस्वरूप दुश्मन देश ऐसे लोगों या समूह को आर्थिक व अन्य सुख-सुविधाएं देकर उनसे आतंकी हमले व हिंसक कार्रवाई करवाते रहते हैं ताकि देश की प्रगति बाधित होती रहे। ऐसे कारनामों से हमारे देश की गंगा-जमुना जैसी संस्कृति पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है।
आइए जानते हैं धार्मिक उन्माद हमारे देश के लिए किस प्रकार घातक है।
धर्म तो संस्कृति का नाम है
एक धर्मनिरपेक्ष देश में धार्मिक कट्टरता एक बुराई है। यही बुराई आपसी द्वेष का कारण बनती है। जब तक आंतरिक रूप से शांति न हो किसी भी देश की बाह्य सुरक्षा को भी खतरा होता है। देखा जाए तो धर्म या मजहब उस पौधे के समान है जिसे जितना पानी मिलेगा उतना ही विशाल होगा। धर्म को समाज ने ही हमारे ऊपर थोपा है। बच्चा जिस समाज में पैदा होता है उसी धर्म को मानने लगता है इसलिए धर्म या मजहब को आंतरिक अशांति का कारण बनाना मूर्खता है।
देश के विकास में बाधक
अपने ही धर्म को सबसे ऊंचा मानने के कारण देश में धार्मिक हिंसात्मक घटनाएं बढ़ी है। धार्मिक हिंसा से देश वे प्रशासन को बहुत ज्यादा नुकसान होता है। धार्मिक कट्टरता से न देश का विकास हो सकता है, न ही समाज का।
विकास की राह में अवरोध
भारत में सभी धर्मों का समान रूप से आदर किया जाता है। किसी भी देश में धार्मिक कट्टरता देश के विकास में बाधक है, क्योंकि एक धर्म विशेष का प्रचार करना, उसे मान्यता या उसका समर्थन देना, दूसरे धर्म में अपने धर्म का वर्चस्व कम दिखाई देने लगता है। लोग धर्म के प्रति अलग नजरिए से देखते हैं। धीरे-धीरे छोटे स्तर से लगाकर पूरे देश में धार्मिक कट्टरता का माहौल बन जाता है। विकास में बाधा डालने का काम करता है।
धार्मिक कट्टरता हर क्षेत्र में बाधक
धार्मिक कट्टरता देश के विकास में ही नहीं बल्कि हर क्षेत्र जैसे समाज, पड़ोस, गली-मोहल्ले और सम्पूर्ण संसार के विकास में बाधक होती है। प्यार और स्नेह कुदरत की दी हुई एक ऐसी चीज है जिससे हर क्षेत्र में चहुंमुखी विकास किया जा सकता है। अत: भारतीय संस्कृति और भारत में तो धार्मिक कट्टरता के लिए बिल्कुल भी कोई स्थान नहीं होना चाहिए। भारतीय संस्कृति तो वसुधैव कुटुम्बकम् की संस्कृति है।
ओछी राजनीति का परिणाम
आज समाज दिन प्रतिदिन आंतरिक रूप से खोखला होता जा रहा है । हमारी सनातन संस्कृति की जड़ों में दीमक सी लग गई है। धर्म, जाति और संप्रदाय के नाम पर देश में विभाजनकारी रेखा खींची जा रही है। जो समाज में राग, द्वेष और वैमनस्य उत्पन्न कर रही है। धर्म को अफीम की तरह प्रयोग करने वाले समाजकंटक वास्तविक मुद्दों से भोली-भाली जनता का ध्यान भटकाने की कोशिश में लगे हैं जबकि हमारे देश में सवाल अनेक हैं? क्या महंगाई, बेरोजगारी, गरीबी मुद्दे नहीं बन सकते?
धर्म का राजनीति में प्रवेश घातक
मर्यादित दायरे में धर्म का पालन करना एक सामान्य व्यवहार है। धर्म में राजनीति का प्रवेश धार्मिक कट्टरवाद के लिए आग में घी का काम कर रहा है। इस पर कानून बनाकर रोक लगाई जानी चाहिए। समान नागरिक संहिता भी लागू की जानी चाहिए। इसके अभाव में उत्पन्न असंतोष और असहिष्णुता से जो कट्टरता धर्म की पालना में बढ़ रही है वह निश्चित रूप से देश के विकास में बाधक है।
‘ बाधक है धार्मिक कट्टरता ‘
धार्मिक कट्टरता विवादों को जन्म देती है जो देश की शांति और एकता भंग करती है। इससे आम जन को और देश की आर्थिक व्यवस्था का नुकसान होता है। तोड़फोड़, आगजनी और हिंसा की घटनाओं से सार्वजनिक एवं निजी संपत्ति की हानि होती होती है। कर्फ्यू लग जाता है , बाजार सुनसान हो जाते हैं। अशांति के माहौल में कोई निवेशक निवेश करना उचित नहीं समझता। आर्थिक मंदी होगी तो देश का विकास कैसे संभव होगा।
राष्ट्र धर्म सबसे पहले
आज एक तरफ हम विकास की सीढ़ियां चढ़ते जा रहे हैं वहीं धर्म के नाम पर एक दूसरे की टांग खिंचाई के अलावा कुछ नहीं करते। पहले से एक धर्म अपना राष्ट्र धर्म निभाना चाहिए। एक दूसरे के साथ मिलकर हमें आगे बढ़ना चाहिए, न कि किसी धर्म विशेष के प्रति कट्टरता रखने की सोच को । यह हमारे ऊपर है कि हमें किस तरीके से अपने आप को विकसित करना है।
सर्वधर्म समभाव समझना होगा
भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है फिर भी धर्म के नाम पर सबसे ज्यादा दंगे फसाद यहीं होते हैं। धार्मिक कट्टरवादियों को धर्म में लिखी समभाव की बातें समझ नहीं आती। वो पूरी दुनिया में अपने धर्म को श्रेष्ठ मानते हैं। दूसरे धर्मावलंबियों को नीचा दिखाना और धर्म की राजनीतिक व्याख्या करने में ही समय बर्बाद करना इनका शगल होता है।
देश के लिए अभिशाप
धार्मिक कट्टरता किसी भी देश के विकास में बाधक है। धार्मिक कट्टरता से इंसान के मन में द्वेष भर जाता है। समाज में घृणा और नफरत फैलाने वाले लोगों से देशवासियों को सावधान रहने की जरूरत है। धर्म के प्रति लोगों को समाज में नहीं, अपने दिलों में जगह बनानी होगी।
कट्टरता से होता है उपद्रव
धार्मिक कट्टरता अन्य धर्म के लोगों पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालती है तो बाधक नहीं होगी। लेकिन कभी-कभी कट्टरता अति हो जाती है और लोगों के सामाजिक जीवन को प्रभावित करती है तो बाधक होगी। धार्मिक कट्टरता जब उपद्रव का रूप ले लेती है तो जान-माल की क्षति आपदा की भांति करती है।
विवादों को बढ़ावा
धार्मिक विवादों से देश के आम जन को नुकसान होता है। फिर भी नेता ऐसे विवादों को बढ़ावा देते हैं। भारतीय संविधान की प्रस्तावना में धार्मिक स्वतंत्रता पर विशेष जोर दिया है। फिर भी आजकल देश में धार्मिक कट्टरता देखने को मिलती है, यह चिंता का विषय है।
परधर्म-निंदा न्यायोचित नहीं
धार्मिक कट्टरता से व्यक्तियों में विद्वेष उत्पन्न होता है, जो देश की तरक्की में बाधक बनता है । स्वधर्म पालन की सभी को स्वतंत्रता है , लेकिन परधर्म-निंदा व फसाद न्यायोचित नहीं है। धर्म केवल घरों में हो, किन्तु बाहर सब भारतीय हों। कट्टरता किसी एक धर्मानुयायी होने की नहीं अपितु सच्चा भारतीय नागरिक होने की हो, तभी देश प्रगति कर सकेगा।
सीमा से परे जाने का खतरा
समाज में धार्मिक कट्टरता होने के कारण जात-पात, छुआछूत, ऊंच-नीच जैसे भेदभाव उत्पन होते हैं। साथ ही शिक्षा के अभाव में धार्मिक कटरता से दंगे भी देखने को मिलते हैं जो कि किसी भी देश के कल्याण एवं विकास के मार्ग में अवश्य ही अवरोध उत्पन्न करते हैं। शिक्षा के अभाव और किसी क्षेत्र की सीमा के परे जाने के दुष्परिणाम ही होंगे।
विकास की दौड़ में पीछे
आए दिन होने वाले धार्मिक आधार पर विवाद व दंगे-फसाद से हमारा देश आगे बढ़ने की बजाय पीछे की ओर लौट रहा है । धर्म नहीं है ये केवल उन्माद है। ये सब आमजन को मूर्ख बनाने के लिए किए जाते हैं।
विकास की धीमी गति का कारण
यह बिल्कुल सही है कि धार्मिक कट्टरता देश के विकास में बाधक है। देश में धर्म को लेकर इतनी खींचतान होती है कि इसकी वजह से अपने देश की अर्थव्यवस्था भी प्रभावित हो रही है। यह अपने देश के विकास की गति को धीमा कर रही है। यहां तक कि लोग दूसरे धर्म वाले दुकानदार की दुकान से कुछ खरीदना तक ठीक नहीं समझते।
इस सोच के आधार पर आप संघर्ष का रास्ता चुनकर इस बात के लिए आवाज़ उठा सकते हैं कि धर्म और आस्था के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए। यह सोच इस मान्यता पर आधारित है कि धर्म से संबंधित किसी भी तरह का वर्चस्व खत्म होना चाहिए ।
— डॉ. सारिका ठाकुर “जागृति”