गज़ल
हाल-ए-दिल तुमसे छुपाना था छुपाया ना गया
बहुत कुछ तुमको बताना था बताया ना गया
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गुफ्तगू होती रही यूं तो तुमसे देर तलक
मगर जो हमको सुनाना था सुनाया ना गया
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दिल के आईने के कर दिए टुकड़े लाखों
अक्स जो तेरा मिटाना था मिटाया ना गया
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मय में डूब कर बाकी तो सब भूले लेकिन
जिस संगदिल को भुलाना था भुलाया ना गया
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तुम जो चाहते थे मिल भी जाता वो तुमको
तुम्हें जब कदम बढ़ाना था बढ़ाया ना गया
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आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।