इतिहास

कृषक जीवन के संवाहक : प्रेमचंद

एक महान उपन्यास सम्राट भारतीय परिवेश में युगदृष्टा के रूप में कृषकों के हृदय में विराजमान है। गांधी जी के शब्दों में भारत की सच्ची तस्वीर तो भारत के गाँव में ही है। भारत में 80 प्रतिशत जनता गांव में निवास करती है। भारतीय संस्कृति के महानायक प्रेमचंद ने अपने दिव्य दृष्टि के द्वारा वर्तमान तस्वीर को लेखनी के माध्यम से अपनी कहानी व उपन्यासो में उकेर दिया। उन्होंने आदर्शवादी तथा यथार्थवादी दृष्टिकोण के आधार पर सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक व आर्थिक प्रत्येक क्षेत्र में कहानी को जीवांत रूप में प्रस्तुत किया। भारतीय कृषकों के अभावग्रस्त जीवन, दीन-हीन मजदूरों की दयनीय दशा को हृदयंगम और हृदय में गहराई तक प्रविष्ट सहानुभूति से उनका चित्रण किया। प्रेमचंद सच्चे साहित्यकार के रूप में संवेदना लिए हुए उपन्यास और कहानी साहित्य को जीवन के कटुसत्य एवं यथार्थ तक पहुँचा दिया। प्रेमचंद के लेखन में राष्ट्रीयता एवं राष्ट्रप्रेम के स्वर गुंजायमान होते है। उनका प्रथम कहानी संग्रह ‘सोजे वतन’ भारतीय आत्मा का प्रतिनिधित्व करने के कारण ही जब्त कर लिया गया।
उनकी अधिकांश रचनाओं में उर्दू की प्रधानता रही है। प्रेमचंद ने 1916 ई० में  हिन्दी में कहानी लेखन का कार्य किया। 1936 ई० तक लगभग 300 कहानियाँ संग्रहित हो गई। इन 30 वर्षों का सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक रूप में यथार्थवाद पर आधारित साहित्य लिखा गया। प्रेमचंद ने आदर्श और जीवन के यथार्थ को जीवंतता प्रदान करने के लिए दहेज, बेमेल विवाह, पराधीनता, लगान, छुआछूत, जातिभेद, विधवा विवाह, तथा पति-पत्नी के आत्मीय संबंधों को बहुत सूक्ष्म रूप में निरूपित किया। 1936 ई० तक साहित्य यात्रा करते हुए उनकी महाजनी सभ्यता, गोदान और कफन जैसी रचनाएँ अधिक यथार्थ परख हो गई। किंतु उसमें कोई निष्कर्ष नहीं निकल सका। प्रेमचंद मानवता के साथ मार्क्सवादी भी रहे। इसीलिए उनकी रचना में इन दोनों की प्रधानता रही। भारत देश में अधिकांश वर्ग कृषक रूप में जीवन यापन करता आया है। कृषक का मातृभूमि के प्रति जो ऋण है। उस ऋण से उऋण ना होने के लिए उससे कोई कार्य करना ही होगा। क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति का जीवन यापन किसान के द्वारा खेती-बाड़ी आदि से संबंधित रहा है। लेकिन ब्रिटिश शासन व्यवस्था ने किसानों को बंधुआ मजदूर, बेरोजगारी ,जमीन से बेदखल तथा नारी के प्रति शोषण को बढ़ावा ही दिया। इससे भारतीय लोग शनैः शनैः महाजनों पर आश्रित हो गए। परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़े केवल भाग्य के अधीन ही रहकर परिवार का भरण-पोषण तक सीमित रह गया था। तत्कालीन समाज में उदित धनपतराय (प्रेमचन्द) ने जीवन की विभीषिका को बहुत समीप से देखा व भोगा। असमय माता-पिता की मृत्यु के उपरांत उनका जीवन संघर्षमय रहा। इसी संघर्ष को उन्होंने हथियार बनाकर लेखनी के रूप में अनेक कहानियाँ लिखी जो जीवन को आदर्श रूप में रेखाकिंत करती है। उनमें सर्वश्रेष्ठ कहानी पूस की रात, नमक का दरोगा, ईदगाह जैसी जीवंत कहानी के माध्यम से अपने मनोभावों को उकेर दिया। वह अपनी कहानियों को उर्दू भाषा में नवाबराय के नाम से प्रकाशित करते थे। लेकिन अंग्रेजों ने तलाशी के द्वारा जिसमे आजाद भारत केविषय में सर्व प्रथम कहानी संग्रह ‘सोजे वतन’ की प्रति को फाड़ दिया। इसके साथ ही ब्रिटिश शासक अज्ञात भय से ग्रसित हो गए। कि यह नवाब राय और कोई नहीं प्रेमचंद ही है। इसके पश्चात प्रेमचंद ने कृषक जीवन से जुड़ी सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक आडम्बर, दान-पुण्य अंधविश्वास, बेमेल विवाह आदि विषयों को उपन्यास के रूप में केंद्रित किया। प्रेमचंद और साहित्य दोनों एक दूसरे के पूरक रहे है। प्रेमचंद के जीवन से जुड़े प्रत्येक घटनाक्रम को उन्होंने साहित्य में सृजित किया।
प्रेमचंद एक क्रांतिकारी रचनाकार होने के साथ ही देशभक्त भी थे। उन्होंने समाज में व्याप्त अनेक कुरीतियों को निकट से देखा और उन्हें कहानी व उपन्यास के माध्यम से लोगों के समक्ष रखा। समाज में जो भी समस्याएं रही। उन समस्याओं का चित्र लेखनी के माध्यम से उकेरा गया प्रेमचंद जी की रचनाएं आज के परवेश में यथार्थ रूप में हमारे सामने उपस्थित है। आज के साहित्य जगत में प्रेमचंद के समान दूसरा उच्च कोटि का साहित्यकार आज तक नहीं हुआ। उनकी प्रेरणा से ही वर्तमान साहित्य जगत अपने लेखन में जीवन की संवेदनाओ को जीवंत रूप में प्रस्तुत करते रहेगें।
— डॉ. पूर्णिमा अग्रवाल

डॉ. पूर्णिमा अग्रवाल

मैं अम्बाह पीजी कॉलेज में हिंदी की सहायक प्राध्यापिका के रूप मैं पदस्थ हूँ। मेरा निवास स्थान सदर बाजार गंज अम्बाह, मुरैना (म.प्र.) है।