कविता

मैं बूढ़ा नहीं

बाल पक गए

चेहरे पर झुरियां छा गई

कमर झुक गई

कदम लड़खड़ाने लगे

दांत टूटने लगे

नजर कमजोर हो गई

इसका मतलब यह नहीं

मैं बूढ़ा हो गया

मैं बूढ़ा नहीं

और निखर गया

बचपन,जवानी और बुढ़ापे का मिश्रण हूं

धूप,सर्दी, बरसात

सब देखा हुआ हूं

सब अनुभवों को जांचा परखा हुआ हूं

मैं बूढ़ा नहीं

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020