क्षणिकापद्य साहित्य

अब्र 

1. अब्र

ज़माने के हलाहल पीकर

जलती-पिघलती मेरी आँखों से

अब्र की नज़रें आ मिली

न कुछ कहा, न कुछ पूछा

वह जमकर बरसा, मैं जमकर रोई

सारे विष धुल गए, सारे पीर बह गए

मेरी आँखें और अब्र

एक दूजे की भाषा समझते हैं।

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2. बादल
तुम बादल बन जाओ
जब कहूँ तब बरस जाओ
तुम बरसो मैं तुमसे लिपटकर भीगूँ
सारे दर्द को आँसुओं में बहा दूँ
नहीं चाहती किसी और के सामने रोऊँ,
मैं मुस्कुराऊँगी, फिर तुम लौट जाना अपने आसमाँ में।
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3. घटा
***
चाहती हूँ तुम आओ, आज मन फिर बोझिल है
घटा घनघोर छा गई, मेरे चाहने से वो आ गई
घटा प्यार से बरस पड़ी, आकर मुझसे लिपट गई
तन भीगा मन सूख गया, मन को बड़ा सुकून मिला
बरसों बाद धड़कनो में शोर हुआ, मन मेरा भाव-विभोर हुआ।
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4. घन
***
हे घन! आँखों में अब मत ठहरो
बात-बे-बात तुम बरस जाते हो
माना घनघोर उदासी है
पर मुख पर हँसी ही सुहाती है
पहर-दिन देखकर, एक दिन बरस जाओ जीभर
फिर जाकर सुस्ताओ आसमाँ पर।
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5. मेघ
***
अच्छा हुआ तुम आ गए, पर ज़रा ठहरो
किवाड़ बन्दकर छत पर आती हूँ
कोई देख न ले मेरी करतूत
मेघ! तुम बरसना घुमड़-घुमड़
मैं कूदूँगी छपाक-छपाक,
यूँ लगता है मानो ये पहला सावन है
उम्र की साँझ से पहले, बचपन जीने का मन है।
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6. बदली
***
उदासी के पाँव में महावर है
जिसकी निशानी दिख जाती है
बदली को दिख गई और आकर लिपट गई
उसे उदासी पसन्द जो नहीं है
धुलकर अब खिल गई हूँ मैं,
उदासी के पाँव के महावर फिर गाढ़े हो रहे हैं
अब अगली बारिश का इन्तिज़ार है।
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– जेन्नी शबनम (28. 7. 2021)