ग़ज़ल
समय ने सिलसिला तोड़ा हमारा
परिंदों की तरह जोड़ा हमारा
परिंदों की तरह जोड़ा हमारा
बड़ा बाज़ार है पर आदमी हम
नहीं है मूल्य क्या थोड़ा हमारा
पगों से नापते धरती बुढ़ाये
रखा है काठ का घोड़ा हमारा
भरोसे रहबरों के था रसातल
हमीं ने रास्ता मोड़ा हमारा
हमें हमसे बचाने आ न दुश्मन
हमारा जिस्म है कोड़ा हमारा
अलग कर अंग ख़ुश लगता मसीहा
न देगा दर्द अब फोड़ा हमारा
— केशव शरण