सामाजिक

बुजुर्ग

बड़े बुजुर्गों और हमारी पिछली पीढ़ियों से अक्सर हम सतयुग और कलयुग का नाम सुनते आ रहे हैं जिसे समझने के लिए हमें भारतीय कवि गीतकार प्रदीप के भजन देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान कितना बदल गया इंसान और आज के इस इंसान को ये क्या हो गया इसका पुराना प्यार कहां पर खो गया, को सुनकर खासकर वर्तमान पीढ़ी के युवाओं को रेखांकित करना समय की मांग है। वैसे तो परिस्थितियों के अनुसार स्थितियां बदलती रहती है परंतु मेरा मानना है कि हमारे बड़े बुजुर्गों के प्रति सोच में बदलाव को सभी ने एक साथ मिलकर रोकना होगा क्योंकि हमारे बड़े बुजुर्ग कुल और वंश का एक प्रतिष्ठित और पूज्य व्यक्तित्व हैं। वह हमारी धरोहर हैं, इन्हें भौतिक सुख सुविधाओं से अधिक अपनों के साथ की ज़रूरत होती है। हमारे युवाओं को यह समझना होगा कि हमारे बड़े बुजुर्ग वह पेड़ है जो थोड़े कड़वे हो सकते हैं लेकिन इनके फल बहुत मीठे होते हैं, इसके दो कदम आगे इनकी छांव का कोई मुकाबला नहीं हो सकता।
बात अगर हम हमारे बड़े बुजुर्ग रूपी धरोहर को सुरक्षित रखने की करें तो हम सबको मिलकर इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाने होंगे हमारी सोच को इनके प्रति सकारात्मक बनाए रखना होगा पाश्चात्य और नए जमाने की सोच को विराम देना होगा क्योंकि सांस्कृतिक श्लोकों में भी आया है, अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोंसेविन: चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम,अर्थात जो बुजुर्ग वृद्धजनों विनम्र और नित्य अनुभवी लोगों की सेवा करते हैं उनकी चार चीजें हमेशा बढ़ती रहती हैं -आयु विद्या यश और बल ! पर अफसोस इस बात का है कि यह चारों चीजें सभी को चाहिए लेकिन, वृद्ध जनों बुजुर्गों अनुभवी सम्मानित लोगों की सेवा कोई नहीं करना चाहता है !
साथियों हाल ही में, बुजुर्गों के लिए कार्यरत स्वयंसेवी संस्था हेल्पएज इंडिया द्वारा 4.5 हजार लोगों पर किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार जो प्रमुख तथ्य सामने आए वे इस प्रकार हैं:-सर्वेक्षण के मुताबिक देश के 19 शहरों में बुजुर्गों की स्थिति सबसे ज्यादा चिंताजनक है। उनमें मुंबई, चेन्नई, बेंगलुरु, हैदराबाद और भुवनेश्वर प्रमुख हैं। बुजुर्गों को प्रश्नावली भरने को दी गई थी, उसमें लगभग 44 फ़ीसदी लोगों ने यह स्वीकारा कि सार्वजनिक स्थलों पर उनके साथ बुरा व्यवहार किया जाता है।देश के 53 फ़ीसदी बुजुर्ग ऐसा मानते हैं कि समाज में उनके साथ भेदभाव किया जाता है।सार्वजनिक स्थलों पर किसी बात की जानकारी मांगने पर 64 फ़ीसदी लोग उनके साथ बुरे लहजे में बात करतेहैं सार्वजनिक स्थलों की लाइन में आगे खड़े होने पर 12 फ़ीसदी बुजुर्गों को आसपास मौजूद लोगों की उग्र प्रतिक्रिया देनी पड़ती है। सर्वेक्षण की रिपोर्ट के मुताबिक मेंटिनेस एंड वेलफेयर ऑफ सीनियर सिटीजन एक्ट पर सही ढंग से अमल नहीं हो रहा।
बात अगर हम बड़े बुजुर्गों के महत्व की करें तो, इंसान सब कुछ भूल सकता है, लेकिन अपने पूर्वज नहीं। इनके बिना हमारा इतिहास बिल्कुल बेकार है और इतिहास बोध से कटे हुए समाज जड़ों से टूटे हुए पेड़ के समान होते हैं। जिस घर के अंदर बड़े बुजुर्गों का आदर और सम्मान नहीं किया जाता उस परिवार में सुख, समृद्धि, संतुष्टि और स्वाभिमान कभी नहीं आ सकता। बुजुर्ग हमारा स्वाभिमान होते हैं। बुजुर्ग हमारी धरोहर है। उन्हें सहेजने की जरूरत होती है। अगर हम परिवार में स्थाई रूप से सुख-शांति और समृद्धि पाना चाहते हैं, तो परिवार में बुजुर्गों का सम्मान अवश्य करें। हम सब कुछ बदल सकते हैं, लेकिन पूर्वज नहीं। हम उन्हें छोड़कर इतिहास बोध से कट जाते है। हमारे बड़े बुजुर्ग हमारे धरोहर है इन्हें सहेज कर रखना सम्मानीत करते रहना से हमें हर पल कुछ ना कुछ सीखने का मिलता है लंबी उम्र गुजार चुके इन बुजुर्गों के अनुभव का लाभ मिलता है यही नहीं किसी भी आपदा के समय किस प्रकार से धैर्य के साथ काम करना है उस दौरान हमें इनके अनुभवों का लाभ मिलता है।
बात अगर हम वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए ढलती उम्र में प्रवेश करने वाले सभी मनीषियों को अपने भविष्य की आर्थिक सुरक्षा के बारे में शुरू से ही तैयारी करनी चाहिए, ताकि रिटायरमेंट के बाद व्यक्ति अपनी जरूरतें खुद पूरी कर सके शुरू से ही अपने सामाजिक संबंधों को बेहतर बनाने की कोशिश करनी चाहिए। ऐसे रिश्ते किसी इन्वेस्टमेंट की तरह होते हैं। जिनके लिए नियमित रूप से थोड़ा समय और पैसे खर्च करने की जरूरत होती है। यह बात हमेशा याद रखें कि वृद्धावस्था में पुराने दोस्त रिश्तेदार और पड़ोसी ही मददगार होते हैं। आजकल ज्यादातर परिवारों में एक या दो ही संताने होती है। अगर उन्हें कैरियर की वजह किसी दूसरे शहर या देश में शिफ्ट होना पड़े तो ऐसी स्थितिके लिए माता-पिता को पहले से ही मानसिक रूप से तैयार रहना चाहिए। बुजुर्गों को अपना सामाजिक दायरा विस्तृत करना चाहिए सबसे जरूरी बात यह है कि बुजुर्ग अपनी बढ़ती उम्र को बीमारी ना समझें और जहां तक संभव हो सामाजिक रूप से सक्रिय रहने की कोशिश करें। हां जब उनका शरीर थकने लगे तो ऐसी स्थिति में संतानों को भी यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि चाहे कितनी भी व्यस्तता क्यों ना हो। अंतत: बुजुर्ग माता-पिता उन्हीं की जिम्मेदारी हैं। चाहे कितनी भी व्यस्तता हो कम से कम सुबह और रात को सोने से पहले उनके साथ बातचीत के लिए 10-15 मिनट जरूर निकालें। लंच टाइम में अगर आप उनसे केवल इतना ही पूछ लें कि ‘आपने खाना खाया या नहीं’ ऐसी छोटी-छोटी बातों से भी उन्हें बहुत खुशी मिलती है।
हमें अपने बच्चों को शुरू से ही ग्रैंडपेरेंट्स का सम्मान करना सिखाएं। अगर दोनों पीढ़ियां एक-दूसरे की जरूरतों और भावनाओं का ख्याल रखना सीख जाएं तो इससे कई समस्याएं अपने आप दूर हो जाएंगी।
— किशन सनमुखदास भावनानी

*किशन भावनानी

कर विशेषज्ञ एड., गोंदिया