लघुकथा

खुशियों की बारिश

घर में हरियाली तीज की तैयारियाँ चल रही थी । बाहर लॉन में झूले को सजाया जा रहा था । कावेरी अपने पति गिरिश से कहती है ,  “सोच रही हूँ इस बार तीज में रितु को बुला लूँ । आखिर कब तक उससे नाराजगी रखेंगे ! माँ हूँ मैं… अब उससे मिलने के लिए व्याकुल हो रही हूँ ।”
“बिल्कुल नहीं… वह हमारी बेटी नहीं है । जबसे उसने अपनी मर्जी से दूसरी जाति के लड़के से विवाह किया तभी से मैंने उसे मरा हुआ समझ लिया.”  गिरीश ने कड़क स्वर में  कहा ।
“कब तक इस अंधी सोच में पड़े रहोगे ! क्या हम उससे भी बेहतर लड़का तलाश करते ? लड़का गुणी हैं , संस्कारी है , अच्छे पद पर नौकरी करता है । सिर्फ एक जाति के आधार पर बच्चों की खुशियों को कुचलना सही नहीं ,” कावेरी ने गिरीश को समझाने का प्रयास किया ।
कावेरी और गिरीश के बीच काफी बातें हुई और अंत में गिरीश को भी रितु की खुशियों को कुबूल करना पड़ा । कावेरी ने रितु को फोन लगाया और दामाद के साथ घर आने को कहा । फोन पर माँ के शब्दों को सुनकर रितु भावुक हो गई । बहुत दिनों के बाद इस सावन रितु का तन मन खुशियों की बारिश में भींग रहा था ।
— रेखा भारती मिश्रा

रेखा भारती मिश्रा

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