दास्तानें तो बहुत सुन लीं
दास्तानें तो बहुत सुन लीं, हम ने ज़िन्दगी की
अब दास्तान कोई तनहा, रात की भी तो सुना दो
बुलावा दिया जाता नहीं, कभी सावन के बादलों को
बारिशों को ज़िन्दगी की, अब तो बरस जाने दो
तक़ाज़े उनसे मिलने के, बहुत ही बढ़ गए हैं
गली में उस बेवफ़ा की, अब तो हमें जाने दो
बहुत दूर जा चुके हैं, अब एक दूसरे से ज़िन्दगी में
इशारे अब किसी मुलाकात के, अब तो हो जाने दो
आलम बेबसी का आज तो, देख लो मेरी आँखों में
बुझ गई है प्यास दिल की, तनहा मैं रह गया हूं
बेवजह ही थर-थरा है, आज तो मेरा जिस्म
रुके आँसुओं को अब तो, पलकों से गिर जाने दो
पुकार रहा है दिल मेरा, चले आओ अब कहीं से भी
सपने प्यार के अब तो, मेरी आँखों में भी सजा दो
तरीक़ा यह किस तरह का है, मुहब्बत करने का
रंग ज़िन्दगी को दिखाने हैं, ख़ुशी से ही दिखाने दो
बात अब कहाँ से आ गई है, अना की ज़िन्दगी में मदन
वजूद ही अपना जब हम, खो चुके हैं ज़िन्दगी में
चुपचाप ही लौट आए हैं, हम उसकी दहलीज़ से
हाथ भी उठाए नहीं हमने, जब दस्तक देने को