कल रात मेरे सपने मे
आजाद भगत सिंह आए
ऐसे वीर शहीदों को
सम्मुख पाके हम हर्षाए
हम बोले हे वीर शहीदों
अपने कदमो की थोड़ी सी रज दे दो
मेरा जीवन सफल हो जाएगा
मै भी कुछ देश भक्ती कर लूं
मेरा भी कुछ मान बढ़ जाएगा
हे वीर शहीदो आपके बलिदान को
देश सदियों याद रखेगा
आपकी शहादत पूजनीय है
राष्ट्र का कोना कोना महकेगा
दोनो पुन्य आत्माएं चुप रहीं
दोनो की आंख में आंसू था
पानी का एक कतरा न था,
दोनो की आँखों में लहू था
जगह जगह देश बँट रहा है,
अपनी सँस्कृति अपनी जडों से कट रहा है,कभी
कन्याकुमारी से कश्मीर तक
विस्तार था,फिर क्यूँ छोटे छोटे
सूबों में बँट रहा है,क्या फिर इतिहास दोहराया जायेगा,
क्या फिर गुलामी का
काला दौर आयेगा,
क्या इसी दिन की खातिर
हम ने प्राण गँवाये थे,
क्या हमारा बलिदान
व्यर्थ गया,
क्यूँ सत्य के मुख पर ताले है, जगह जगह बेवजह की
हडताले है,सिर्फ
आँकड़ों में कम हो रही मँहगाई,
क्यूँ झूठ के लिबास में
छुपी सच्चाई,
मनुष्यता की मर्यादा लाँघते लोग
निर्भया के दामन को
तार तार करते लोग,
कहाँ खो दी देश ने
सदगुणों की पूँजी
इन्सानियत के मुद्दे पर क्यों होती राजनीति,
कहाँ गई राष्ट्रीय एकता
और अखण्डता की भावना,
अपना घर अपना पेट भरे
क्यों हर नेता की कामना,
हर तरफ दहशत गर्दो का शोर मचा है,
महंगी हुई शिक्षा
बचपन किताबों के
बोझ तले दबा है,
क्या इसी खातिर
हम ने प्राण गँवाये थे,
क्या हमारा बलिदान व्यर्थ गया
मै सिर झुकायें
शर्मसार खडा था,
सचमुच देश की अस्मिता कासवाल बडा था,
मैं क्या कर सकता हूँ,
मैंने सकुचाते हुए पूछा,
वो बोले
तुम हो सरस्वती के साधक
अब सब जिम्मेदारी है तुम्हारी ,
अपने गीतों में भर दो वो चिंगारी,
स्याही की जगह खून भर दो,
हर जयचंद, हर देशद्रोही
कीपोल खोल दो,
फिर देश को जगाना है,
पहले गोरे अँग्रेजों कोभगाया था,
अब दोमुंहे काले अँग्रेजों को भगाना है।
— ओमप्रकाश बिन्जवे “राजसागर”