सच का रस्ता छोड़ोगे तो क्या होगा मालूम भी है
सच का रस्ता छोड़ोगे तो क्या होगा मालूम भी है
अपने पथ से भटकोगे तो क्या होगा मालूम भी है
माना हद में रहकर जीना दुश्कर होता है लेकिन
पार हदों के जाओगे तो क्या होगा मालूम भी है
मन को मनमानी से रोकोगे तो थोड़ा दुख होगा
मर्यादाएं तोड़ोगे तो क्या होगा मालूम भी है
झूठ फ़रेब दिला तो देगा दुनिया में शुहरत बेशक
ख़ुद से आँख मिलाओगे तो क्या होगा मालूम भी है
प्यार समर्पण अर्पण से चलती हैं रिश्तों की साँसें
अपना अपना सोचोगे तो क्या होगा मालूम भी है
जितना मँहगा दाम नज़र में दुनिया की उतना अच्छा
ख़ुद को सस्ता कर दोगे तो क्या होगा मालूम भी है
बंसल वाज़िब प्रश्न उठाना है कवियों का फ़र्ज़ मगर
सत्ता से पंगा लोगे तो क्या होगा मालूम भी है
सतीश बंसल
०२.०८.२०२२