कहानी- अंतिम सीढ़ी
शांती जीवन की यादों को यादकर उन लम्हों को याद कर रही थी. जब इस घर में कैसे हँसी और० खिलखिलाहट गूँजती थी सब लोग कैसे साथ मिलकर रहते थे. बच्चों के लिए टिफिन तैयार करना उनको स्कूल के लिए छोड़ने बस स्टॉप तक जाना फिर स्कूल से लौटने पर लेने जाना घर का पूरा काम करना उनकी दिनचर्या में शामिल था. फिर पतिदेव और बच्चों के काम में ही पूरा निकल जाता था वो बहुत खुश रहती थी धीरे धीरे बच्चे भी बड़े होने लगे शांती को लिखने का बहुत शौक था. जब भी टाइम मिलता लिखने बैठ जाती थी
दोनों बच्चे पढ़ने में होशियार थे एक दिन राजेश बोला ” आप पापा से बोलो मुझे बाहर पढ़ने के लिए जाना है एमबीए की पढ़ाई के लिए शांती ने अपने पति से पूछा पहले तो वो मना करने लगे फिर मान गए वो विदेश पढ़ने चला गया दूसरा बेटा भी बाहर पढ़ने गया घर अब घर काटने को दौड़ता मन नहीं लगता था. दोनों की वहाँ सर्विस लग गयी वही अपनी पसंद की लड़कियों से शादी कर वहीं सेटिल हो गए.
शांति के पति राज भी अपने कामो में बिजी रहते थे एक दिन उनकी तबियत अचानक से बिगड़ी उनको डॉक्टर ने कैंसर बताया. अब वो ज्यादा दिन नहीं जी सकेगें शांती का रो रोकर बुरा हाल हुआ जा रहा था बेटों को फ़ोन किया” कि तुम्हारे पापा अब अपनी अंतिम सीढ़ी पर है उनके बचने की उम्मीद कम है अगर तुम लोग उन्हें देखना चाहते हो जितनी जल्दी हो सके तो आ जाओ” आज शांती के पति भी उसे छोड़कर चले गए दोनों बेटे और बहू घर आये राज की तेरहवीं के एक दिन पहले दोनों बेटे दोनों बहु आपस मे बात कर रहे थे. कि पापा की सब प्रोपर्टी और घर बेचकर माँ को वृद्धा आश्रम भेज देंगे यह बात सुनकर शांती के पैरों तले जमीन खिसक गई वह जोर जोर से रोने लगी .
उसने सोचा जिन बच्चों को मैने पाल पोसकर बड़ा किया पढ़ाया लिखाया आज वही बच्चें मुझे वृद्धाआश्रम भेजने की सोच रहे है. अगले दिन क्रिया कर्म होने के बाद बाद राजेश बोला माँ ” हमने सोचा है कि पापा की सब प्रोपर्टी और घर बेचकर जो पैसे मिलेगे वो हम दिनों भाई आपस में बांट लेंगे और आपको वृद्धा आश्रम में भेज देंगे.
यह सुनकर शांती गुस्से से तिलमिलायी बोली “ये प्रोपर्टी तुम्हारे पापा ने अपनी मेहनत से यह सब कमाया है यह घर मेरे पति की आखिरी निशानी है मैं इसको बेचने नहीँ दूँगी इस पर तुम्हारा कोई हक नहीं है इस पर मेरी मर्जी के खिलाफ कोई इसे नहीँ बेच सकता और न ही मैं वृद्धा आश्रम जाऊँगी इस घर मे ही अपनी अंतिम सीढ़ी तक रहूँगी अब तुम लोग जब आ सको तब आना।” यह कहकर शांती अपने पति की तस्वीर लेकर अपने कमरे में चली गयी और उसके सामने फूट फूटकर रोने लगीं . सब चले गए वह अकेली रह गयी अपनी यादों के साथ समय निकाल रही थी वह बहुत दुखी रहती थी उसने अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए लिखना और किताब पढ़ना शुरू किया
उसको पहले से ही लिखने का शौक था उसने अपने शौक को पूरा करने का फैसला लिया. आज वो पेपर,पत्रिकाओं, फेसबुक के समूह में लिखती है कविताएँ ,लेख ,कहानियां, न्यूज़पेपर मे प्रकाशित होती हैं. वह आज बहुत खुश है कि उम्र के इस पड़ाव पर अपना शौक पूरा कर रही है अपना शौक पूरा करने की कोई उम्र नहीँ होती है.
और वह अपनी अंतिम सीढ़ी पर आज वो बहुत खुश है.
— पूनम गुप्ता