सावन
वारिश की बूंदें छम छम करती ,
सबके मन को भिगो रही है,
बूंदें जो आसमान से उतरकर,
धरती की प्यास बुझा रही है,
सब ओर मस्ती छायी है,
शाम सुहानी हो रही है,
वारिश की बूंदों की आवाज,
हदय के तार खनका रही हैं,
प्रियतम के आने की आहट,
मन को गुदगुदा रही है,
काले बादलों से निकलती बूंदें,
सावन में आग लगा रही है,
प्रियतम तुम भी आ जाओ,
मेरी छतरी तुम्हें बुला रही है,
मीठी मीठी सी बयार,
तन मन को शीतल कर रही है,
वारिश की बूंदें छम छम करती,
सबके मन को भिगो रही है।।
— गरिमा लखनवी